जहन.
मेरे जहन में रोज एक कत्ल होता हैरोज एक ख्वाब सदियों की नींद सोता है ।समझ पाता नही,
वो मेरे करीब आता क्यूँ है ?
मेरे ज़मीर को चुपके से जगाता क्यूँ है?
ख़ुद को देखकर,
ख़ुद से नफ़रत और बढ़ जाती हैआइना रोज मेरी सूरत पे रोता है।रोज मिलता भी हूँ ख़ुद से,
यूं भी छुप छुप केरोज मरता भी हूँ,
यूं ही ख़ुद में घुट केऔर फिर जिंदगी का कातिल बन केये जहन रोज मुझको ऐसे ही खोता है।ये रोज मुझमें जिंदगी का जहर घोलता हैमेरी खामोशी को जब भी ये खोलता हैमेरी आवाज को मेरी ही मिटटी में दबाकरन जाने रोज ही ये क्या बोता है?
its just simply brilliant !
ReplyDeleteमेरी आवाज को मेरी ही मिटटी में दबाकर
न जाने रोज ही ये क्या बोता है?
bahut bahut bahut achchha likha hai
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत ख़ूब, उम्दा!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब, उम्दा!
ReplyDeleteआइना रोज मेरी सूरत पे रोता है।
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ज़ेहन मे कत्ल ---
ReplyDeleteख्वाबो का सो जाना ---
बहुत सुन्दर रचना
बधाई
gajab kee kalpanashakti aur shabdon kaa sanchayan kiya hai aapne...bahut hee umdaa rachnaa......
ReplyDeleteकहूँ कि बहुत अच्छा लिखा है,तो यह काफी न होगा...और इससे ज्यादा क्या लिखूं यह इस वक्त मैं सोच ही नहीं प् रहा....कहूँ तो क्या कहूँ ......लिखूं तो क्या लिखूं.....चलिए इस बार मेरे कुछ ना लिखे को बहुत कुछ लिखा समझ लीजियेगा....!!
ReplyDeleteaaaooo ...
ReplyDeleteserious poem ... good !!!