Thursday, May 28, 2009

जहन.


मेरे जहन में रोज एक कत्ल होता है
रोज एक ख्वाब सदियों की नींद सोता है
समझ पाता नही,वो मेरे करीब आता क्यूँ है ?
मेरे ज़मीर को चुपके से जगाता क्यूँ है?
ख़ुद को देखकर,ख़ुद से नफ़रत और बढ़ जाती है
आइना रोज मेरी सूरत पे रोता है
रोज मिलता भी हूँ ख़ुद से,यूं भी छुप छुप के
रोज मरता भी हूँ,यूं ही ख़ुद में घुट के
और फिर जिंदगी का कातिल बन के
ये जहन रोज मुझको ऐसे ही खोता है
ये रोज मुझमें जिंदगी का जहर घोलता है
मेरी खामोशी को जब भी ये खोलता है
मेरी आवाज को मेरी ही मिटटी में दबाकर
जाने रोज ही ये क्या बोता है?



9 comments:

  1. its just simply brilliant !

    मेरी आवाज को मेरी ही मिटटी में दबाकर
    न जाने रोज ही ये क्या बोता है?

    ReplyDelete
  2. बहुत ख़ूब, उम्दा!

    ReplyDelete
  3. बहुत ख़ूब, उम्दा!

    ReplyDelete
  4. आइना रोज मेरी सूरत पे रोता है।

    खूबसूरत प्रस्तुति। वाह।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  5. ज़ेहन मे कत्ल ---
    ख्वाबो का सो जाना ---

    बहुत सुन्दर रचना
    बधाई

    ReplyDelete
  6. gajab kee kalpanashakti aur shabdon kaa sanchayan kiya hai aapne...bahut hee umdaa rachnaa......

    ReplyDelete
  7. कहूँ कि बहुत अच्छा लिखा है,तो यह काफी न होगा...और इससे ज्यादा क्या लिखूं यह इस वक्त मैं सोच ही नहीं प् रहा....कहूँ तो क्या कहूँ ......लिखूं तो क्या लिखूं.....चलिए इस बार मेरे कुछ ना लिखे को बहुत कुछ लिखा समझ लीजियेगा....!!

    ReplyDelete
  8. aaaooo ...
    serious poem ... good !!!

    ReplyDelete