तुम्हे पाने के लिए
हम जिंदगी की हर ख्वाहिश से परे थे
और तुम्हे खो देने के
हर फासले से डरे थे॥
है अजनबी अब तलक भी
हम एक दूजे से
मगर एहसास ताउम्र
तेरे साथ जीने से भरे थे ॥
मानता हू मेरा दर्द
सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा था
मगर आंसूं मेरे
मेरी वफ़ा से खरे थे॥
अनसुना सा था
मेरे दिल का फ़साना
खामोशी की चोट से
मगर अल्फाज़ हरे थे ॥
तू न होकर भी
अक्सर रहा मुझे में शामिल
मेरी तन्हाई के तुझसे
यूं भी रिश्ते गहरे थे॥
तू न होकर भी
ReplyDeleteअक्सर रहा मुझे में शामिल
मेरी तन्हाई के तुझसे
यूं भी रिश्ते गहरे थे॥ ....
गहन भाव,बधाई .
bahut pasand aya.accha lekhti hai app.
ReplyDeleteachhi hai...
ReplyDeleteमन की व्यथा-कथा सारी ही, शब्दों में भर डाली।
ReplyDeleteखामोशी की चोट हृदय की,नस-नस में कर डाली।
इतनी सुन्दर कविताओं का रहस्य बतायेंगी क्या?
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
Parul,
ReplyDeleteapkee kavitaon men din par din nikhar aata ja raha hai..bahut badhiya rachna.
Poonam
नायाब !
ReplyDeleteअत्यन्त सुंदर और प्रभावशाली रचना। विशेष रूप से इन पंक्तियों ने छू लिया।
ReplyDeleteहै अजनबी अब तलक भी
हम एक दूजे से
मगर एहसास ताउम्र
तेरे साथ जीने से भरे थे
yah khuda
ReplyDeletemere dil ki awaz ke kisi ke itne khubsurat shabd....wah
congrats.
khub likho .....
dr rk rawat, iit khargpur