Wednesday, March 25, 2009

कोशिश.


मेरी कोशिश है
शब्द अपनी थकन से निकले ॥
कभी तो ये जिंदगी
मेरी कलम से निकले ॥
मुस्कुराये हर ख़्याल
रूठा सा कोई सवाल
हो सके तो
मन की उलझन से निकले ॥
सपने हो जाए सयाने
समय ख़ुद मुझको पहचाने
कि अपना वजूद निखर
हर दर्पण से निकले ॥
न बस कहीं ठहराव हो
और मन की नाव हो
सबके आंसूं बटोरने को
हम अपने गम से निकले ॥
जिंदगी,जिंदगी से भी
और सोच से भी है परे
जी भर जीए यूं हर लम्हा
कि उम्मीद,शर्म से निकले ॥
ये सहमी सी खामोशी चीरकर
कुछ करने को गंभीर कर
लफ्ज़ दिल के मेरे
आवाज बन हर कदम से निकले॥

13 comments:

  1. लफ्ज़ दिल के मेरे
    आवाज बन हर कदम से निकले॥

    हौसला बुलंद अल्फाज !

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  2. पारूल जी , सचमुच आपकी लेखनी साहित्य वर्षा कर रही है , कभी बिखरती दिखती है तो कभी निखरती है । आज फिर से बेहतरीन रचना की प्रस्तुती की है आपने । बहुत ही अच्छा लगता है कम शब्दों में सब कुछ जब समेटती है कविता । शुभकामनाएं

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  3. ords...
    Wednesday, March 25, 2009
    कोशिश.

    मेरी कोशिश है
    शब्द अपनी थकन से निकले ॥
    कभी तो ये जिंदगी
    मेरी कलम से निकले ॥

    bahut khoob.

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  4. श्रम-स्वेद से निर्माण हो जिसका,
    वही रचना सही है।
    रेत, पत्थर से गुजर कर,
    धार गंगा की बही है।।
    क्या तुम्हारा रूप है,
    यह भेद दर्पण खोल देगा।
    प्यार कितना है समाया,
    मन सभी कुछ बोल देगा।

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  5. ये सहमी सी खामोशी चीरकर
    कुछ करने को गंभीर कर
    लफ्ज़ दिल के मेरे
    आवाज बन हर कदम से निकले॥
    aameen!!!!

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  6. bhavnaon ko kalam se paper par otarana,har kisi ke bus ki baat nahee, bahoot khoob.

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  7. दरअसल आज तो मैं कुछ बोल ही नहीं पा रहा.....दरअसल मैं यह सोच रहा हूँ.....इस अद्भुत रचना के लिए कोई भी बोल मेरे पूरे तन-मन से निकले....अगरचे ये हो पाए तो इक सच्ची टिप्पणी मेरे मन के पैराहन से निकले....!!

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  8. Parul,
    bahut ..bahut bhavpoorn aur achchhe shilp kee kavita...badhai.
    Poonam

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  9. ahhaaaaaaaaa....
    aisey hi likhti raho...

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  10. parul ji,

    Bahut khoob kya likhti hain aap...
    dil ko choo jati hai har line

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