Friday, March 13, 2009

न जाने...


कुछ बूँदें जागी
बारिश के शोर से
कोई पत्ता भी हिला था
किसी छोर से !!
मैंने देखा उधर
जीया था जो उम्र भर
वो ख्वाब भीगा जा रहा था
इस रुत में जोर से !!
पलकें नम भी थी
नींद कुछ कम भी थी
फिसल रहा था लम्हा
ये किस ओर से !!
रात खाली पड़ी
ये बैचेनी हर घड़ी
बंध नही पा रहा क्यों
सब समय की डोर से !!
सरसराहट हुई
कोई आहट हुई
धूप खिली
ख्वाब लिपटा नई भोर से !!
चांदनी धुल गई
आँखें खुल गई
कैसे गुजरी जिंदगी
न जाने उस दौर से!!

13 comments:

  1. हार्दिक बधाई स्वीकार करें । इस रचना के लिए , बहुत ही कोमल भाव हैं ।

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  2. मैंने देखा उधर
    जीया था जो उम्र भर
    वो ख्वाब भीगा जा रहा था
    इस रुत में जोर से !!
    पलकें नम भी थी
    नींद कुछ कम भी थी
    फिसल रहा था लम्हा
    बहुत अच्छा लिखा है पारूल जी।

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  3. चांदनी धुल गई
    आँखें खुल गई
    कैसे गुजरी जिंदगी
    न जाने उस दौर से!!
    fabolous composition,khusurat

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  4. क्या कहूं....
    दिल के भावों को शब्दों का लिबास पहना दिया है आपने.
    बेहतरीन !!

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  5. bahut sudnar lagi aapki yah kavita bhavpurn gahri abhivykati

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  6. एक नाजुक रचना!! बधाई.

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  7. sundar aur marmik....

    jaise dil se kahi gai koi nazm.. badhaai. aur shukriya.

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  8. सुंदर रचना लिखी है ...

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  9. जीवन भर आते रहते हैं,
    सुन्दर स्वप्न सलोने।
    नींद टूटने पर केवल,
    रह जाते खाली कोने।।

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  10. जीया था जो उम्र भर
    वो ख्वाब भीगा जा रहा था......
    bahut khoobsurat bhawon ko sanjoya hai

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  11. दिल के भावों को दिल तक पहुँचने वाली रचना ........बहुत अच्छी है

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