Saturday, March 14, 2009

अगर ..


अगर मुझ पर तेरी किसी भी बात का असर होता
तो शायद न मैं जिंदगी से बेखबर होता
न फिरता इधर उधर ठिकाने की तलाश में
तेरे दिल में ही सही,मेरा कोई तो घर होता ॥
न मैं ख़ुद से परेशां होता
न तू मुझसे जुदा होता
कहीं,कुछ होंसला होता
कि थोड़ा आसां सफर होता ॥
कोई होता मेरे करीब
तो न लगता इतना अजीब
ख़ुद की कीमत नही तो
कम से कम उसको खोने का तो डर होता ॥
जो आज मुझको है कुछ भी कहते
वो सब चुप तो रहते
खता हुई है मुझसे
न ये एहसास उम्र भर होता॥
किसी का प्यार ही मिलता
या कि कोई मुझ पर रोता
पर शायद उसके होने से
मैं भी आज कुछ होता ॥

11 comments:

  1. जितनी सुंदर आप हो उससे कहीं सुंदर आपकी कविता है। क्योंकि उसमें आप झलक रही हो।
    आपको शब्दों से आपकी कविता की शक़्ल बन रही है। बहुत ख़ूब, अच्छी लगी आपकी कविता।

    अगर मुझ पर तेरी किसी भी बात का असर होता
    तो शायद न मैं ज़िंदगी से बेख़बर होता।

    कोई होता मेरे करीब
    तो न लगता इतना अजीब
    ख़ुद की क़ीमत नहीं तो
    कम से कम उसको खोने का तो डर होता।

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  2. किसी का प्यार ही मिलता
    या कि कोई मुझ पर रोता
    पर शायद उसके होने से
    मैं भी आज कुछ होता
    behad khubsuratagar hum kahe ,uparwali tippani se hum 100 percent sehmat hai.sach.jadugari hai shabdon mein.

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  3. होते यदि तुम जीवन में,
    फिर ऐसे गीत नही सजते।
    दो-शब्द अधूरे रह जाते,
    सुर और संगीत नही बजते।

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  4. किसी के होने और न होने की भावनाओं को बखूबी चित्रित किया है आपने

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  5. बहुत सुन्दर कविता।
    घुघूती बासूती

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  6. साँची प्रीत भरी कविता का स्वागत है

    ---
    चाँद, बादल और शाम
    गुलाबी कोंपलें

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  7. यही तो मैं भी रात दिन कहता रहता हूँ कि ""अगर तुझ पर मेरी बात का असर होता -मगर सुने तब न

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  8. पारुल ,
    आपकी कविताओं में धीरे धीरे शिल्प और कथ्य दोनों में काफी बदलाव आ रहा है .बधाई .
    हेमंत कुमार

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