यूँ तो पल नहीं लगता है
दिल के रोने में
मगर सदियाँ गुजर जाती है
खुद के खाली होने में !!
यही सोचता हूँ आखिर
खुद को कहाँ रख दूं
कि रह जाओ बस तुम ही
इस दिल के कोने में !!
हसरतों की दौड़ में
मुमकिन नहीं
तुम तक पहुंचू
हौसला चाहिए फिर भी
खुद को तन्हा बोने में !!
दर्द का दरीचा
जब जब भी भर आया
रहा है कोई तो खलल
आह भिगोने में !!
कसक इतनी रही
मैं खुद को भी न मिला
रहा है हाथ तुम्हारा भी
मेरे खोने में !!
ReplyDeleteultimate!!
ReplyDelete'yun to' ishq ka dastoor hai
ReplyDeleteparul,tum to kamaal ho
lafzon se khel jati ho..kaise?
वाह जी ,बहुत अच्छे , सरलता सहजता से सब कुछ कह कर प्रभावित करना कोइ आपसे सीखे , बहुत उम्दा ...
ReplyDeleteयूं ही ,
रच देती हो ,
शब्दों , भावों का ,
इक अद्भुत संसार ,
कितनी सहज ,
सरल ,
प्रभावी हो ,
माहिर हो ,
आखर मोती पिरोने में ....
ReplyDeletefst time i have come on your blog
sach mano..hil gayi :)
Beautiful composition as usal
ReplyDeleteAniket
वाह वाह
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ReplyDeleteimmense writing!
vartika
ReplyDeletetouchy!
ReplyDeletebehad umda
ashok parikh
खुद को बोने और खोने का सिलसिला भी कितना अजीब होता है ... बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteबहुत खूब ... सच है की उम्र लग जाती है गम भुलाने में ... शब्दों का ताना बना मन तक जाता है ...
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर प्रस्तुति। बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ......
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