Monday, October 3, 2016

यूँ तो!






यूँ तो पल नहीं लगता है
दिल के रोने में
मगर सदियाँ गुजर जाती है
खुद के खाली होने में !!
यही सोचता हूँ आखिर
खुद को कहाँ रख दूं
कि रह जाओ बस तुम ही
इस दिल के कोने में !!
हसरतों की दौड़ में
मुमकिन नहीं
तुम तक पहुंचू
हौसला चाहिए फिर भी
खुद को तन्हा बोने में !!
दर्द का दरीचा
जब जब भी भर आया
रहा है कोई तो खलल
आह भिगोने में !!
कसक इतनी रही
मैं खुद को भी न मिला
रहा है हाथ तुम्हारा भी
मेरे खोने में !!


15 comments:


  1. parul,tum to kamaal ho
    lafzon se khel jati ho..kaise?

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  2. वाह जी ,बहुत अच्छे , सरलता सहजता से सब कुछ कह कर प्रभावित करना कोइ आपसे सीखे , बहुत उम्दा ...



    यूं ही ,
    रच देती हो ,
    शब्दों , भावों का ,
    इक अद्भुत संसार ,
    कितनी सहज ,
    सरल ,
    प्रभावी हो ,
    माहिर हो ,
    आखर मोती पिरोने में ....

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  3. fst time i have come on your blog
    sach mano..hil gayi :)

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  4. Beautiful composition as usal


    Aniket

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  5. वाह वाह

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  6. immense writing!







    vartika

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  7. behad umda




    ashok parikh

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  8. खुद को बोने और खोने का सिलसिला भी कितना अजीब होता है ... बहुत सुन्दर .

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  9. बहुत खूब ... सच है की उम्र लग जाती है गम भुलाने में ... शब्दों का ताना बना मन तक जाता है ...

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  10. वाह ! बहुत सुंदर प्रस्तुति। बहुत खूब।

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