यूँ ही बस कोरा रह जाऊँ
या कि कुछ ज़िन्दगी लिखूँ !
लफ्ज़ लफ्ज़ यूँ बिखरुं
कि अपनी तिश्नगी लिखूँ !
करूं तेरा शहर खाली
या कि हो जाऊँ सवाली
बंजर से पड़े मन में
कोई नीली नदी लिखूँ !
तुझे देखूं किसी भोर में
या कि चाँद के कोर में
अपना गुमनाम सा पता
तुझ पर ही कहीं लिखूं !
वो कुछ कतरे सिरफिरे
जो नींदों में गर आ गिरे
उस पानी से इश्क़ पर भी
तेरा नाम सही लिखूं !
बड़े खामोश है रस्ते
मैं भी कुछ इस तरह चीखूँ
कि अपनी हर एक 'हाँ' पे
मैं बस तेरा 'नहीं' लिखूँ !
sundar...
ReplyDeleteअच्छी लगी रचना.
ReplyDeletekhoobsurat, pyari si kavita
ReplyDeleteबेहद सुन्दर भाव से गढ़ी गयी पोस्ट
ReplyDeleteबेहद सुन्दर भाव से गढ़ी गयी पोस्ट
ReplyDeleteबड़ी कोमल रचना
ReplyDeleteप्रेम के कुछ पल और गहरे लम्हों को गूंथ पर लिखी भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteपारुल जी आपको पढना हमेशा अच्छा लगता है | नज्मों में एक जादू सा है आपकी | क्या आप फेसबुक पर भी हैं ?
ReplyDeleteKayal hoon!!
ReplyDeleteBeautiful....
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसुन्दर कविता
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ReplyDeletebahut khoob likha hai aapne
ReplyDeleteदेख रहा हूँ ब्लॉग लेखन कम हो चुका है। फिर भी पिछले साल की लिखी आपकी इस रचना को आज देख रहा हूँ तो मेरे लिए एकदम नई है और ताजी। बहुत खूब लिखा है। मैं खुद ब्लॉग को समय नहीं दे पा रहा जिसका अफ़सोस है किन्तु इधर लिखना शुरू किया है और सबको फिर से जोड़ने की तैयारी का प्रयास है। आप लिखा करें -
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना. बधाई
ReplyDeleteबस वाह ... बंजर से पड़े मन में नीली सी नदी लिखूं और अंत में तेरी ना लिखूं बहुत खूब
ReplyDeleteउम्दा ।
ReplyDeleteयह पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगीं
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