चाहिए तुम्हारे हस्ताक्षर
दिल के दस्तावेज पे
तुम ही तुम चस्पा हो
इश्क के हर पेज पे !
कुछ अधूरे से ख़त
जिनको है तुम्हारी लत
आ खड़े हैं अब
मरने की स्टेज पे !
ख्यालों के कुछ झुनझुने
अब भी है तुमसे सने
कुछ नहीं बदला है अब भी
खेल के इस फेज पे !
तन्हाई अब भी है कहीं मिस
जिंदगी भर रही है फीस
टुकड़ों में बिखरा पड़ा हूँ
ख़्वाबों की सेज पे !
दिल के दस्तावेज पे
तुम ही तुम चस्पा हो
इश्क के हर पेज पे !
कुछ अधूरे से ख़त
जिनको है तुम्हारी लत
आ खड़े हैं अब
मरने की स्टेज पे !
ख्यालों के कुछ झुनझुने
अब भी है तुमसे सने
कुछ नहीं बदला है अब भी
खेल के इस फेज पे !
तन्हाई अब भी है कहीं मिस
जिंदगी भर रही है फीस
टुकड़ों में बिखरा पड़ा हूँ
ख़्वाबों की सेज पे !
एक कोकिला से दूसरी कोकिला तक - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteखूबसूरती से उकेरे भाव
ReplyDeleteलाजवाब |
ReplyDeleteआपकी पोस्ट 14 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
बहुत बढ़िया लाजबाब अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRECENT POST... नवगीत,
चाहिए तुम्हारे हस्ताक्षर
दिल के दस्तावेज पे
तुम ही तुम चस्पा हो
इश्क के हर पेज पे !
वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !
बहुत ख़ूबसूरत !
आदरणीया पारुल जी !
अंग्रेजी शब्दों की काफियाबंदी बहुत ख़ूब लग रही है ...
सुंदर रचना के लिए बधाई !
बसंत पंचमी एवं
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत बहुत खुबसूरत........ब्लॉग का नया स्वरुप भी अच्छा है ।
ReplyDeleteचाहिए तुम्हारे हस्ताक्षर
ReplyDeleteदिल के दस्तावेज पे
तुम ही तुम चस्पा हो
इश्क के हर पेज पे !
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें
बड़े ही कोमल भाव, सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteKomalta se sanjoye bhavon ki abhiwaykti-BADHAIE
ReplyDeleteलाजवाब खूब सुन्दर
ReplyDeleteचाहिए तुम्हारे हस्ताक्षर
दिल के दस्तावेज पे
तुम ही तुम चस्पा हो
इश्क के हर पेज पे
मेरी नई रचना
फरियाद
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
दिनेश पारीक
बहुत अलग सी रचना
ReplyDelete
ReplyDeleteचाहिए तुम्हारे हस्ताक्षर
दिल के दस्तावेज पे ... खूबसूरत !
तुम ही तुम बस तुम ही तुम ...
ReplyDeleteजब हर कहीं वो ही हैं ... तो उनके हस्ताक्षर की इंतज़ार क्यों ... बहुत खूबसूरत ख्याल से जोड़ी है रचना ...
सुन्दर कविता
ReplyDeleteटुकड़ों में बिखरा पड़ा हूँ
ReplyDeleteख़्वाबों की सेज पे !
दिलचस्प भी... दिलफरेब भी....
ReplyDeletekya baat hai!
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