जिंदगी मरती रही है
इश्क के बुलबुलों पर
और मेरी तन्हाई
लिखती रही है दिलों पर
अब भी सब कुछ गोल ही है
छितरे से उस कांच में
ख़त सुलग रहे है उसके
चाँद की उस आंच में
और बढ़ता जा रहा है
धुआं जैसे लबों पर !!
नींद फिसलने लगी है
कतरे की एक छींक पर
फब रहे हैं हीर-रांझे
फिर से उस तारीख पर
एक जुमला जिन्दगी का
आज फिर है सबों पर !!
रोज़ के रोज़ वही
फटी सी खुसर-फुसर
सोच के लिबास में
अब फिट नहीं शायद उमर
अक्सर ही नए कयास
दिल के नए रबों पर !!
एक सिक्का धूप का
दिल की खरीद पर
एक रूपया चाँद का
इश्क की हर ईद पर
मेरे हरफ इस मर्तबा
ज़िन्दगी के ऐसे करतबों पर!!
एक सिक्का धूप का
ReplyDeleteदिल की खरीद पर
एक रूपया चाँद का
इश्क की हर ईद पर,,
वाह!!!बेहद भावपूर्ण लाजबाब पंक्तियाँ,,पारुल जी,,बधाई
RECENT POST: रिश्वत लिए वगैर...
bohot sunder.... :)
ReplyDeleteBohot sunder... :)
ReplyDeleteबड़ी ही सुन्दर रचना..
ReplyDeleteएक सिक्का धूप का
ReplyDeleteदिल की खरीद पर
एक रूपया चाँद का
इश्क की हर ईद पर
मेरे हरफ इस मर्तबा
ज़िन्दगी के ऐसे करतबों पर!!
बहुत सुंदर ...
गुलाब दिवस पर बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeletetoo too gud!
ReplyDeleteप्रशंसनीय कविता |प्रेम की सहज अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteकोमल अहसास लिए सुन्दर रचना...
ReplyDeleteकोमल अहसास लिए सुन्दर रचना...
ReplyDeleteएकदम जबरदस्त ....बढ़िया ब्लॉग..
ReplyDeleteएकदम जबरदस्त . बढ़िया ब्लॉग ..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ...
ReplyDeleteएक सिक्का धूप का
ReplyDeleteदिल की खरीद पर
एक रूपया चाँद का
इश्क की हर ईद पर....वाह, गजब
बेहद सुन्दर पारुल.....
ReplyDeleteआपकी नाज़ुक और प्रेमपगी कविता मन को भा गयी....
अनु
बहुत सुन्दर सार्थक रचना ...
ReplyDelete..चीड के पेड़ का फल गाँव की याद दिला गया.. बर्फ से ढंकें चीड के पेड़ मुझे बहुत प्यारे लगता हैं ... गौशाले में इन फलों को जलाकर ठण्ड दूर भागते थे ..
बहुत बढ़िया लगा आपके ब्लॉग पर आकर..
शुभकामनाएं..
बहुत सुन्दर सार्थक रचना ...
ReplyDelete..चीड के पेड़ का फल गाँव की याद दिला गया.. बर्फ से ढंकें चीड के पेड़ मुझे बहुत प्यारे लगता हैं ... गौशाले में इन फलों को जलाकर ठण्ड दूर भागते थे ..
बहुत बढ़िया लगा आपके ब्लॉग पर आकर..
शुभकामनाएं..
सुन्दर प्रस्तुति ***एक सिक्का धूप का
ReplyDeleteदिल की खरीद पर
एक रूपया चाँद का
इश्क की हर ईद पर
एक सिक्का धूप का
ReplyDeleteदिल की खरीद पर
एक रुपया चांद का
इश्क की ईद पर......
क्या ग़ज़ब.....वाह!!
और यह ग़ज़ल इस नज्म के नाम...
देर से आए हैं पर आए तो।
नाज से फिर गले लगाए तो।
मेरी तबियत ही है फरेबफहम,
ख्वाब कोई ज़रा दिखाए तो।
हम कहां होशमंद रहते हैं,
उनको कोई खबर सुनाए तो।
किसका दर है दारीचा किसका है,
हम कहां हैं कोई बताए तो।
कौन कहता है हम नहीं बदले,
अब कोई आइना दिखाए तो।
ये गली अब भी आशना है हुजूर
कोई हिम्मत से आए जाए तो।
यूं कि अब भी वहीं पै हैं ‘ज़ाहिद’
आके कोई कभी उठाए तो।
बहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteसादर
एक रुपया चाँद का।
ReplyDeleteइश्क की हर ईद पर
--बहुत सुंदर!
sunder abhivyakti.
ReplyDeletesunder abhivyakyi.
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .सादर नमन
ReplyDeleteभाषा सरल,सहज यह कविता,
भावाव्यक्ति है अति सुन्दर।
यह सच है सबके यौवन में,
ऐसी कविता सबके अन्दर।
कब लिख जाती कैसे लिखती,
हमें न मालुम होता अकसर।
वाह ....वाह......वाह........सुभानाल्लाह.....लफ़्ज़ों की जादूगरी।
ReplyDeleteबेहतरीन और अदभुत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteएक सिक्का धूप का
ReplyDeleteदिल की खरीद पर
एक रूपया चाँद का
इश्क की हर ईद पर ...
बहुत खूब ... बहुत सस्ता है ये सौदा ... प्रेम के लिए अपनी वेलेंटाइन के लिए ...
अच्छा लगा आपको पढ़ना इतने दिनों बाद ...
behad hi umdaa likha hai...salute !!!
ReplyDeleteplease checkout my blog and let me know how it is
http://thinkagain-hemant.blogspot.in
JIndagi Marti Rahi hia ISHQ ke bulbulo par...Ultimate linee..
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