Friday, February 10, 2012

दस्तक..


लफ़्ज़ों ने दिल पे दस्तक दी
कि अरसे से कुछ लिखा नहीं
यूँ तो सोच रोज़ सुलगी
धुआं कहीं दिखा नहीं॥
मैं रोज़ ख्यालों के दर पर
जाकर भी लौट आता था
जाने वो अनजाना सा वजूद
देखकर भी मुझे क्यूँ चीखा नहीं ॥
गोल करता रह जाता था ख्वाब
चाँद के आकार में
इश्क की नासमझी में
दर्द भी बिका नहीं ॥
एक 'हद' तलाशने
फिरता रहा हूँ दर-ब-दर
आज ये मालूम हुआ कि
जिंदगी सा कुछ फीका नहीं ॥

37 comments:

  1. एक 'हद' तलाशते
    फिरता रहा हूँ दर-ब-दर
    आज ये मालूम हुआ कि
    जिंदगी से कुछ फीका नहीं.

    :)

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  2. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार ११-२-२०१२ को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।

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  3. भावपूर्ण रचना है
    आशा

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  4. एक मरुथल सा हृदय में,
    मृगतृष्णा है नाम तुम्हारा

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  5. आज ये मालूम हुआ कि
    जिंदगी से कुछ फीका नहीं....बहुत-बहुत ही अच्छी भावपूर्ण रचनाये है......

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  6. इश्क की नासमझी में दर्द भी बिका नहीं...

    बहुत सुन्दर...

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  7. यह कैसा सन्नाटा है ? जीवन में तो हर पल रंग बदलते हैं ...

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  8. कल 13/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  9. अंतर्द्वंद और ....

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  10. बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  11. shabd yu hi dastak dete rahe aur ye mahfil yu hi sajti tahe...sundar rachna...

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  12. Wah, bahut khoob....

    http://www.poeticprakash.com/

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  13. बहुत बढि़या।

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  14. मेरी टिप्पणी कहां गयी ??????? स्पैम में देखिएगा ॥

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  15. बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति है....

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  16. सबसे पहले तो खुशामदीद.....अरसा हो गया आपको पढ़े हुए....उम्दा नज़्म....लिखती रहिये पारुल जी आपको पढना अच्छा लगता है ।

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  17. भावभीनी अभिव्यक्ति है|बधाई इतना अच्छा लिखने के लिए|मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है|

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  18. आपने बहुत दिन बाद ही सही लेकिन अच्छा लिखा है |वसीम बरेलवी का एक शेर है कि -अगर जिन्दा है तो ,जिन्दा नज़र आना जरूरी है |आप की कलम अब न रुके तो अच्छा होगा |आपका एक पाठक -

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  19. jindagi bhale hi fiki ho...yahan to mithaas hi hai...!!

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  20. ...कि अरसे से कुछ लिखा नहीं...


    ..कायल हूँ ....

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  21. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
    शुभकामनाएँ

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  22. एक काफी लंबे अर्से बाद आपकी पोस्ट पर आना हुआ..तब पता चला कि आप खुद कई दिनों से दरवाजे के बाहर ही बाहर चक्कर लगा रही हैं..यानि एक लंबी खामोशी...हैरानी है कि आपकी पोस्ट का सिलसिला थमा सा है बेहतरीन कविताओं की कोई पोस्ट धीमी हो जाए अच्छी बात नहीं...जल्दी से चालू हो जाएं..वैसे भी एक महीने से ज्यादा हो गया है.

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  23. बहुत सुन्दर !

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  24. सुन्दर!
    घुघूती बासूती

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  25. लफ्जों ने दिल पे दस्‍तक दी, कि अरसे से कुछ लिखा नहीं,
    यूं तो सोच रोज सुलगी धुआं कहीं दिखा नहीं।

    बहुत बेहतरीन, हर बार की तरह, लेकिन अफसोस लम्‍बे अर्से बाद लौटा हूं।

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  26. बहुत अच्छी कविता पारुल जी |

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  27. जिंदगी सा फीका कुछ भी नही ....सच है
    पर, जिंदगी सा रुचिकर भी तो कुछ नही!

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  28. बहुत ही सुंदर

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  29. This comment has been removed by the author.

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  30. "यूँ तो सोच रोज़ सुलगी
    धुआं कहीं दिखा नहीं"

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  31. Loved it....keep up the good work...

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  32. एक 'हद' तलाशने
    फिरता रहा हूँ दर-ब-दर
    आज ये मालूम हुआ कि
    जिंदगी सा कुछ फीका नहीं

    बहुत अच्छा लिखा है
    पारुल जी !

    ज़िंदगी से हम कई पहलुओं से साक्षात्कार करते हैं …

    मैंने लिखा -
    ज़िंदगी दर्द का फ़साना है !
    हर घड़ी सांस को गंवाना है !
    जीते रहना है , मरते जाना है !
    ख़ुद को खोना है , ख़ुद को पाना है !

    चांद-तारे सजा’ तसव्वुर में ,
    तपते सहरा में चलते जाना है !
    जलते शोलों के दरमियां जा’कर ,
    बर्फ के टुकड़े ढूंढ़ लाना है !


    अच्छी कविता के लिए पुनः बधाई !
    शुभकामनाओं सहित…

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  33. पारुल जी
    नमस्कार !
    पोस्ट बदले हुए बहुत समय हो गया है …
    आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं

    आपकी प्रतीक्षा है सारे हिंदी ब्लॉगजगत को …
    :)
    नई रचना के साथ यथाशीघ्र आइएगा …
    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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