Monday, October 18, 2010

मैं!


जाने कहाँ खुद को रखकर भूला
और ढूंढता रहा फिर,जिंदगी के अज़ाबों में !
याद करता रहा खुद को रातों में जगकर
नहीं पाया जाने क्यों खुद को ख़्वाबों में ?
यूँ मुस्तकिल हो चला
दिल बुस्दिल हो चला
कुछ अपने ही सवालों के जवाबों में !!
कुछ पन्ने थे फट गए
कुछ किस्सों में बंट गए
नहीं मिला मैं खुद को वक़्त की किताबों में !!
मुझे खुद के होने की
जब कोई वजह मिली
मैं खो गया अजनबी से असाबों में !!
और हो गया धीरे धीरे
अपना ही गुनेहगार
उलझता गया सोच के हिसाबों में !!


अजाब- सजा
मुस्तकिल-स्थिर
असाब-कारण



55 comments:

  1. यादों की जरूरत, फकत शायरी में ,
    जँचता नहीं पानी ज्यादा,
    आँखों में, आबों में,
    बदिया बन गयी शायरी,
    हुई बात ख़तम,
    वापस लौट आइये अब,
    महको गुलाबों में ...

    खुश रहिए , और लिखते रहिए तबीयत से ...

    ReplyDelete
  2. khud mein khud ko pana hi to mushkil hai...kahan se udhadh gayi aap ..gud one!

    ReplyDelete
  3. मुझे खुद के होने की
    जब कोई वजह न मिली
    मैं खो गया अजनबी से असाबों में !!
    खुद को ढूढ पाना वाकई मुश्किल है.
    बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  4. क्या बाद है..खुद के होने की कोई वजह न मिली...बहुत शानदार!!

    ReplyDelete
  5. न जाने कहाँ खुद को रखकर भूला
    और ढूंढता रहा फिर,जिंदगी के अज़ाबों में !
    याद करता रहा खुद को रातों में जगकर
    नहीं पाया न जाने क्यों खुद को ख़्वाबों में ?
    बहुत सुंदर ,
    शब्द अपने आप मैं बहुत कुछ कह गए हैं ,
    भावनाओं का सम्प्रेषण सुंदर तरीके से हुआ है .
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद .

    ReplyDelete
  6. behtreen kavita/
    kashmakash dikahti hui jindgi ki

    ReplyDelete
  7. बहुत खूब .....!!
    ये बुस्दिल का भी अर्थ बता देतीं ......

    ReplyDelete
  8. अरे, मेरा कमेंट कहाँ गुम गया??

    ReplyDelete
  9. ऐसी कशमकश के साथ अक्सर सामना होता रहता है ....तुम्हारी पोस्ट से कुछ शब्द ही सीखने को मिले . meaning batana ka shukriya!

    ReplyDelete
  10. मैं तो सचमुच खो गया.

    बहुत ही सुन्दर रचना

    मनोज खत्री

    ReplyDelete
  11. खुद को ढूढ़ने निकला सर्वप्रथम गुनाहों से बाहर निकल आता है।

    ReplyDelete
  12. शानदार। बहुत ही सुंदर।।

    ReplyDelete
  13. उर्दू जुबान में भी बहुत उम्दा लिख लेती हैं आप.
    प्रभावशाली प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  14. मैं यह नहीं कहूंगा कि बहुत अच्छा लिखा है। मैं यह कहूंगा कि इस बार आपने कम शब्दों में ही बहुत कुछ कह दिया है। यह बधाई की बात है और उसे स्वीकार कीजिए।

    ReplyDelete
  15. मैं यह नहीं कहूंगा कि बहुत अच्छा लिखा है। मैं यह कहूंगा कि इस बार आपने कम शब्दों में ही बहुत कुछ कह दिया है। यह बधाई की बात है और उसे स्वीकार कीजिए।

    ReplyDelete
  16. जीवन दर्शन में झांकते भाव --बहुत ही सुंदर

    ReplyDelete
  17. छंदमुक्त कविता में बात कहने का आपका ढंग निराला है.

    कुँवर कुसुमेश
    मेरा ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com भी कृपया देखिएगा

    ReplyDelete
  18. न जाने कहाँ खुद को रखकर भूला
    और ढूंढता रहा फिर,जिंदगी के अज़ाबों में !
    याद करता रहा खुद को रातों में जगकर
    नहीं पाया न जाने क्यों खुद को ख़्वाबों में ?

    bahut hi sundar likha
    khaskar ye char panktiya

    ReplyDelete
  19. पारुल जी,

    हमेशा की तरह लाजवाब.......इस बार आपकी रचना काफी ऊँची उठती है.....खुद में खुद को खोजना.....यही सबसे बड़ी मुक्ति है...... बहुत खूब.....ये पंक्तिया बहुत पसंद आयीं......
    "न जाने कहाँ खुद को रखकर भूला
    और ढूंढता रहा फिर,जिंदगी के अज़ाबों में !
    याद करता रहा खुद को रातों में जगकर
    नहीं पाया न जाने क्यों खुद को ख़्वाबों में ?"

    "बुस्दिल"..........ये शब्द शायद गलत टाइप हो गया होगा......सही कर लीजियेगा.......इस शानदार रचना पर मेरी शुभकामनाये.......ऐसे ही लिखती रहिये |

    ReplyDelete
  20. beautiful parul ji ... khud ko dhood pana to khuda ko doodhne se bhi zada mushkil hai ....

    ReplyDelete
  21. छंदमुक्त कविताओं में बात कहने का आपका ढंग निराला है.

    कुँवर कुसुमेश
    ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com

    ReplyDelete
  22. kya kahun ! bahut hi pyari kavita hai.. lafz nahi hai taarif k liye.....

    Mere blog par bhi sawaagat hai aapka.....

    http://asilentsilence.blogspot.com/

    http://bannedarea.blogspot.com/

    Music Sunne or Download karne ke liye Visit karein...
    Download Direct Hindi Music Songs And Ghazals

    ReplyDelete
  23. कुछ पन्ने थे फट गए ,
    कुछ किस्सों में बट गए
    नहीं मिला मैन्खुद को ,वक्त कि किताबों में .
    एक अर्थपूर्ण चित्र के साथ एक सुंदर रचना हेतु आभार.............

    ReplyDelete
  24. maafi chahungi..harkeet ji..imraan ji..aap sahi hai maine 'busdil' type kiya hai jab ki 'buzdil' hona chahiye..jiska arth hai 'kayar'
    shukriya!

    ReplyDelete
  25. khud mein khud ka na hona..kitni ajib feeling hain!








    vartika!

    ReplyDelete
  26. मुझे खुद के होने की
    जब कोई वजह न मिली
    मैं खो गया अजनबी से असाबों में !!
    खुद को ढूढ पाना वाकई मुश्किल है.

    बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  27. bahut hi behatreen avam bhav-pravan abhvyakti.मुझे खुद के होने की
    जब कोई वजह न मिली
    मैं खो गया अजनबी से असाबों में !!
    और हो गया धीरे धीरे
    अपना ही गुनेहगार
    उलझता गया सोच के हिसाबों में !!
    man ki gaharai me utr gai kavita.
    poonam

    ReplyDelete
  28. Kafi Uljhan thi...Par uljhano se ..

    ReplyDelete
  29. कुछ पन्ने थे फट गए
    कुछ किस्सों में बंट गए
    नहीं मिला मैं खुद को वक़्त की किताबों में !!
    और हो गया धीरे धीरे
    अपना ही गुनेहगार
    उलझता गया सोच के हिसाबों में !!


    आपकी कविता पढ़कर अपने एक शायर दोस्त की यह ग़ज़ल कयों याद आ रही है, नहीं जानता

    कभी बेवजह मुस्कुराकर तो देखो
    रकीबों को घर में बुलाकर देखो

    हरी रेशमी सांस की सरजमीं में
    मुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो

    हमीं हैं हमीं हैं हमीं हम हमेशा
    किताबों से गर्दे हटाकर देखो

    तुनकती हुई हर खुशी को खुशी से
    ज़रा खींचकर गुदगुदाकर तो देखों


    बनेगी नयी लय सजेगा नया सुर
    जाहिद की धुन गुनगुनाकर तो देखों
    20.10.2010

    ReplyDelete
  30. bahut hi sunder abhivyakti. dil ko chu gayi.

    ReplyDelete
  31. अपने "होने" और "न होने" के गोधूलि क्षेत्र के धुंधलके में डूबते उतराते मन की पीड़ा की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  32. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.............मन को छू गई............

    ReplyDelete
  33. बहुत प्रभावशाली और खूबसूरती से लिखी नज़्म !
    बहुत बधाई !

    ReplyDelete
  34. मन जिंदगी के पन्नों में खुद को खो चुका लफ्ज़ है, जिसे जिंदगी तोड़ मोड़ कर जाने कितने टुकड़ों में बाँट कर अर्थहीन बना देती है. और मन अपनी तलाश में, उन टुकड़ों को जोड़ने की जुगत में भटकता है उम्र भर, उसी वेदना के साथ, जो आपकी इस कविता में अभिव्यक्त हुआ है.

    अस्तित्व के दर्द की अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  35. just passed a year ,........feeling nostalgic .

    ReplyDelete
  36. पारुलजी, दरअसल जब 'मैं' भूल जाता है तो..वो मस्त कलंदर बन जाता है किंतु जब वो 'मैं' को ढूंढने लगता है तो आदमी की शक़्ल लेने लगता है..नतीजतन उसे स्थिर, कायर हो ही जाना है..। रचना बेमिसाल है, मैं तो बस कुछ ऐसा दिमाग वाला हूं जो रचना के शब्दों में हर तरह के रस लेना चाहता हूं..सो अपनी ही सोच के उटपटांग से अर्थ...व्यक्त कर दिया करता हूं। जैसे कुछ अपने ही सवालों के जवाबों में..।॥ और उलझता गया सोच के हिसाबों में..।

    ReplyDelete
  37. आज आपकी रचना थोड़ी सी अलग लगी....कुछ ग़ज़ल जैसी....सुंदर अभिव्यक्ति.....शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  38. अपना ही गुनाहगार उलझता गया सोच के हिसाबों में... बेहतरीन। सबसे अच्‍छी बात कि आपने कुछ शब्‍दों के अर्थों पर भी प्रकाश डाल कर हम जैसे पाठकों पर कृपा की है। इसके लिए धन्‍यवाद।
    पहली बार आपके ब्‍लॉग पर आने का मौका मिला। अब रोज आएंगे- आज से ही आपको फॉलो किया। आपने साबित किया है- यू आर द बेस्‍ट...

    ReplyDelete
  39. कई बार तो इंसान ढूंढता ही रहता है अपने आप को और वो कभी नही मिलता .... गहरे जज़्बातों को बाखूबी नज़्म में उतारा है आपने ....

    ReplyDelete
  40. bahut badiya..........keep it up

    ReplyDelete
  41. jaisa naam vaisa kaam.
    badhaai ho .

    ReplyDelete
  42. Beautful composition..

    ReplyDelete
  43. AAP KA LEKHAN AUR SOCH KE BARE ME JYADA BAATE NAHI KARUNGA...KEVAL EK BAAT KAHUNGA..BAHTREEN....

    ReplyDelete
  44. ख़ुद के भीतर ख़ुद को तलाशने की ज़द्दोज़हद का शुरू होना असली मंजिल की तरफ उड़ान का आगाज़ है ..एक दार्शनिक रचना के लिए धन्यवाद ! ..आते-जाते कभी-कभी देखा करता था आपको ....आज रू-ब-रू होने का मौक़ा मिला ....

    ReplyDelete