When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Monday, September 13, 2010
एक ख्याल ....
तेरी करवट के तले
मैंने अपना चाँद रखा था
तेरी नींद के सिरहाने से
उसको बाँध रखा था।
उन बेचैन बेमियादी सी रातों में
जब आँखों का काजल सुलगता था
कहीं उस नूर में
मेरा वो चाँद भी चमकता था
एक रोज किसी ख्वाब के छिलके पे
फिसलेगा अम्बर भी
ये पक्के तौर पर मैंने यूँ भी मान रखा था ॥
बात उस रोज अपने चाँद को टांकने की थी
जिद फिर रात की सिलवटों में झाँकने की थी
मन से उधडी हुई एक नज़्म के धागे रखता था
नया बुनने की हसरत लिये ही बस जगता था
कुछ रेशमी से धागे धूप के,पलकों में उलझे थे
नाम जिनका इन्ही आँखों ने 'सांझ' रखा था ॥
मैं छोड़ आया था कुछ किस्से
इसी सांझ के मुहाने पर
बड़ा ही हल्ला था उस रोज
समन्दर बसाने पर
मैंने जब गौर से देखा अपनी उसी नज़्म को
तो उसमें लिपटा अम्बर से उतरा पहला चाँद रखा था ॥
aaj pahli baar puri kavita pad kar comment de raha hun.
ReplyDeletebahut khoob.........
aaj pahli baar puri kavita pad kar comment de raha hun.
ReplyDeletebahut khoob.........
सुंदर रचना के लिए साधुवाद
ReplyDeletekuch samajh main aaya.. aur kuch nahi bhi aaya :)
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletebohot sunder..... :D
ReplyDeleteइतनी लजीज की रहा न गया,
ReplyDeleteटूटे वादे, की सहा न गया,
आखिर खानी ही पड़ी हमें नज्म उनकी,
यूँ तो हमने आज उपवास रखा था .. !
bahut hi sunder rachana hai
ReplyDeletebahut khubsurat khayaal...achhi rachna.
ReplyDeleteबहुत खूब .. कुछ गुनगुने से ख्वाब पालने लगते हैं पढ़ कर .... लाजवाब .....
ReplyDeleteबहुत नाजुक सी रचना है। जिस तरह करवट तले चान्द रखा गया है और वह भी नींद के सिरहाने, कितनी मुलायम सी बात है, मखमली बात है। जितने भी बिम्ब चुने हुए हैं वे पूरी रचना में चार चांद लगाते नज़र आते हैं। पारुलजी, आपकी इसी खासियत का दीवाना हो चला हूं मैं। मुझे जब भी बेहद इमानदाराना, बेहद नरम सी सीधे दिल तक पहुंचने वाली रचनाये पढने का मूड होता है, आपका ब्लॉग हमेशा साथ निभाता है। धन्यवाद।
ReplyDeleteToo good.
ReplyDeleteअद्भुत कल्पना है।
ReplyDeleteअति उत्तम ...........नयापन दिखा.............बहुत अच्छा लगा ....बधाई
ReplyDeleteतेरी करवट के तले
ReplyDeleteमैंने अपना चाँद रखा था
तेरी नींद के सिरहाने से
उसको बाँध रखा था।
--
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
.सुभान अल्लाह !!
ReplyDeleteबहुत गहरा रचती हो..पढ़कर मनन करना होता है, बधाई.
ReplyDeletebas unhi aap likhte rahe aur hum padhte rahe
ReplyDeleteकुछ रेशमी से धागे धूप के,पलकों में उलझे थे
ReplyDeleteनाम जिनका इन्ही आँखों ने 'सांझ' रखा था ॥
मैं छोड़ आया था कुछ किस्से
इसी सांझ के मुहाने पर
बड़ा ही हल्ला था उस रोज
समन्दर बसाने पर
मैंने जब गौर से देखा अपनी उसी नज़्म को
तो उसमें लिपटा अम्बर से उतरा पहला चाँद रखा था
वाह बड़ा खूबसूरत ख़याल है ....सुन्दर
कोमल मन भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकरवट तले चांद और वह बी नींद के सिरहाने वाह क्या बात है पारुल जी ।
ReplyDelete- एक रोज किसी ख्वाब के छिलके पे
ReplyDeleteफिसलेगा अम्बर भी
- कुछ रेशमी से धागे धूप के,पलकों में उलझे थे
नाम जिनका इन्ही आँखों ने 'सांझ' रखा था
- मैंने जब गौर से देखा अपनी उसी नज़्म को
तो उसमें लिपटा अम्बर से उतरा पहला चाँद रखा था
कुछ बेहतरीन पंक्तियाँ.. नये बिंब और बेहद प्रभावशाली लेखनी..
हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
ReplyDeleteवाह, कित्ती प्यारी रचना...बधाई.
ReplyDelete_____________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है...
phir ek gol nazm..amazing
ReplyDeleteremarkable again
ReplyDeletevartika!
parul ji behad pasand aai aapki yah rachna jo kitni gahraai se likhi hai aapne.sach ,shabdo ka chunav kabile tarrif hai.
ReplyDeletepoonam
wahhhh ek ek shad apni duniya liye hai ..... !! mere blog pr bhi dastak dain ??
ReplyDeleteJAI HO MANGALMAY HO
चांद सी नज़्म .... धन्यवाद.
ReplyDeletebahut khub.....
ReplyDeletewakayi me umdaah....
पारूल आज बस इतना ही
ReplyDeleteमैं एक लेडी गुलजार को अपने सामने खड़ा देख रहा हूं. उसे सलाम करने के लिए अपनी जगह से उठ भी रहा हूं.
कुछ अलग सी लगी... मन को छू गयी
ReplyDeleteItni khoobsurat nazm shayad hi pehle suni ho.
ReplyDeleteLikhte rahiye
बड़ी प्यारी सी नज़्म ....
ReplyDeleteजिसे सिर्फ और सिर्फ महसूस किया जा सकता है .....
समझने की हिमाकत नहीं .....!!
पारुल जी आपकी कविता बहुत अच्छी लगी..
ReplyDeleteक्या इत्तेफाक है..आपका नाम तो काफी सुना-सुना सा लगता है..
बहुत खूब, लाजवाब बधाई
ReplyDeletebahut hi khoobsurat hai yeh khayal...
ReplyDeletepyari rachana
lovely...
ReplyDeleteपारुल जी मैंने पहले भी कहा है ........लफ्जों पर आपकी पकड़ वाकई लाजवाब है ...............फिर एक बार आपने एक बेहतरीन रचना लिखी है, एक पुरुष के भावो के साथ ........मुझे शुरुआत बेहत पसंद आई .........लाजवाब |
ReplyDeleteकभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
बात उस रोज अपने चाँद को टांकने की थी
ReplyDeleteजिद फिर रात की सिलवटों में झाँकने की थी
मन से उधडी हुई एक नज़्म के धागे रखता था
नया बुनने की हसरत लिये ही बस जगता था
कुछ रेशमी से धागे धूप के,पलकों में उलझे थे
नाम जिनका इन्ही आँखों ने 'सांझ' रखा था ॥
बेपैबंद सुनहरें टांके
रंग बिरंगे आंके बांके
इनकी तरफ न क्यों कोई झांके ?
लफ्जों की बेशिकन नक्काशी। वाह वाह पारुल!
हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए साधुवाद
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
[बड़ी प्यारी सी नज़्म ....
ReplyDeleteजिसे सिर्फ और सिर्फ महसूस किया जा सकता है .....
समझने की हिमाकत नहीं .....!! -हरकीरत ]
बात मानी न हरकीरत की और ,
ग़ौर इस नज़्म पर भी कर आया,
पांव छिलके पे भी पड़ा लेकिन,
'चाँद' सा एक "ख्याल" ले आया .
- mansoorali हाश्मी
"उसमें लिपटा अम्बर से उतरा पहला चाँद रखा था"
ReplyDelete- फिर भी इतना रोशन - लाजवाब प्रस्तुति
लगे रहिये...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteआपने तो शब्दो से चाँद पर नक्काशी कर दी...marvellous!
ReplyDeleteWaah...shandar
ReplyDeleteवाह वाह, क्या बात है,कमाल का तखय्युल और
ReplyDeleteतगज्जुल,बहुत उच्च कोटि की कल्पना और
उसका भावचित्रण ,आनंद आ गया!
बहुत बधाई!
पारुल जी आपकी रचना कोमल एहसासों की मधुर प्रस्तुति है
ReplyDeleteपढ़कर मन भीज गया ....................
बहुत बहुत बधाई
सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें:-
अकेला कलम...
सुंदर।
ReplyDelete---------
ब्लॉगर्स की इज्जत का सवाल है।
कम उम्र में माँ बनती लड़कियों का एक सच।
Khoobasurat bhaavanaye sundar shabd-------.
ReplyDeleteभई वाह ....मज़ा आ गया .
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
आभार
बहुत खूबसूरत और नए से बिम्ब लाईं आप.. फिर भी दरख्वास्त है कि ज़रा शिल्प को और कसें..
ReplyDeletebeautiful creation !
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteतेरी करवट के तले
मैंने अपना चाँद रखा था
तेरी नींद के सिरहाने से
उसको बाँध रखा था।
achhi rachna dubara padhne mein kya harz hai.....
ReplyDeleteisliye chala aaya....
bahut zyada acchi hai
ReplyDeletebahut zyada acchi hai
ReplyDeletei am very sorry.too late.i was invited by indore doordarshan m p thish is an excellent poem aapki kavita ko mera salaam
ReplyDeleteबड़ी ही मासूम सी कविता है... झीने-झीने भाव लिए.
ReplyDeletesuperb poem
ReplyDeleteतेरी करवट के तले
ReplyDeleteमैंने अपना चाँद रखा था
तेरी नींद के सिरहाने से
उसको बाँध रखा था।
सुन्दर शब्द प्रयोग..नव्य अभिव्यक्ति..
सुंदर एहसासों से सजी रचना.
ReplyDeleteक्या बात है। जस्ट वाह..........
ReplyDeleteअपन के लिए चांद तो क्या कहें....
बहुत प्यारी कविता कही है आपने।
ReplyDelete................
खूबसरत वादियों का जीव है ये....?
kanha ho...?
ReplyDeletepoora mahina gujar gaya.........
mis you and your comments.
bahut hi sundar rachna hain
ReplyDeletebahut umda , Parul ji .
ReplyDeletechaand si chamak rahi hai ye kavita ..