Monday, September 13, 2010

एक ख्याल ....


तेरी करवट के तले
मैंने अपना चाँद रखा था
तेरी नींद के सिरहाने से
उसको बाँध रखा था।
उन बेचैन बेमियादी सी रातों में
जब आँखों का काजल सुलगता था
कहीं उस नूर में
मेरा वो चाँद भी चमकता था
एक रोज किसी ख्वाब के छिलके पे
फिसलेगा अम्बर भी
ये पक्के तौर पर मैंने यूँ भी मान रखा था ॥
बात उस रोज अपने चाँद को टांकने की थी
जिद फिर रात की सिलवटों में झाँकने की थी
मन से उधडी हुई एक नज़्म के धागे रखता था
नया बुनने की हसरत लिये ही बस जगता था
कुछ रेशमी से धागे धूप के,पलकों में उलझे थे
नाम जिनका इन्ही आँखों ने 'सांझ' रखा था ॥
मैं छोड़ आया था कुछ किस्से
इसी सांझ के मुहाने पर
बड़ा ही हल्ला था उस रोज
समन्दर बसाने पर
मैंने जब गौर से देखा अपनी उसी नज़्म को
तो उसमें लिपटा अम्बर से उतरा पहला चाँद रखा था ॥

69 comments:

  1. aaj pahli baar puri kavita pad kar comment de raha hun.

    bahut khoob.........

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  2. aaj pahli baar puri kavita pad kar comment de raha hun.

    bahut khoob.........

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  3. सुंदर रचना के लिए साधुवाद

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  4. kuch samajh main aaya.. aur kuch nahi bhi aaya :)

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  6. इतनी लजीज की रहा न गया,
    टूटे वादे, की सहा न गया,
    आखिर खानी ही पड़ी हमें नज्म उनकी,
    यूँ तो हमने आज उपवास रखा था .. !

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  7. bahut khubsurat khayaal...achhi rachna.

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  8. बहुत खूब .. कुछ गुनगुने से ख्वाब पालने लगते हैं पढ़ कर .... लाजवाब .....

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  9. बहुत नाजुक सी रचना है। जिस तरह करवट तले चान्द रखा गया है और वह भी नींद के सिरहाने, कितनी मुलायम सी बात है, मखमली बात है। जितने भी बिम्ब चुने हुए हैं वे पूरी रचना में चार चांद लगाते नज़र आते हैं। पारुलजी, आपकी इसी खासियत का दीवाना हो चला हूं मैं। मुझे जब भी बेहद इमानदाराना, बेहद नरम सी सीधे दिल तक पहुंचने वाली रचनाये पढने का मूड होता है, आपका ब्लॉग हमेशा साथ निभाता है। धन्यवाद।

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  10. अति उत्तम ...........नयापन दिखा.............बहुत अच्छा लगा ....बधाई

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  11. तेरी करवट के तले
    मैंने अपना चाँद रखा था
    तेरी नींद के सिरहाने से
    उसको बाँध रखा था।
    --
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  12. बहुत गहरा रचती हो..पढ़कर मनन करना होता है, बधाई.

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  13. कुछ रेशमी से धागे धूप के,पलकों में उलझे थे
    नाम जिनका इन्ही आँखों ने 'सांझ' रखा था ॥
    मैं छोड़ आया था कुछ किस्से
    इसी सांझ के मुहाने पर
    बड़ा ही हल्ला था उस रोज
    समन्दर बसाने पर
    मैंने जब गौर से देखा अपनी उसी नज़्म को
    तो उसमें लिपटा अम्बर से उतरा पहला चाँद रखा था


    वाह बड़ा खूबसूरत ख़याल है ....सुन्दर

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  14. कोमल मन भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  15. करवट तले चांद और वह बी नींद के सिरहाने वाह क्या बात है पारुल जी ।

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  16. - एक रोज किसी ख्वाब के छिलके पे
    फिसलेगा अम्बर भी

    - कुछ रेशमी से धागे धूप के,पलकों में उलझे थे
    नाम जिनका इन्ही आँखों ने 'सांझ' रखा था

    - मैंने जब गौर से देखा अपनी उसी नज़्म को
    तो उसमें लिपटा अम्बर से उतरा पहला चाँद रखा था

    कुछ बेहतरीन पंक्तियाँ.. नये बिंब और बेहद प्रभावशाली लेखनी..

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  17. हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

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  18. वाह, कित्ती प्यारी रचना...बधाई.

    _____________
    'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है...

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  19. remarkable again




    vartika!

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  20. parul ji behad pasand aai aapki yah rachna jo kitni gahraai se likhi hai aapne.sach ,shabdo ka chunav kabile tarrif hai.
    poonam

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  21. wahhhh ek ek shad apni duniya liye hai ..... !! mere blog pr bhi dastak dain ??

    JAI HO MANGALMAY HO

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  22. चांद सी नज्‍़म .... धन्‍यवाद.

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  23. bahut khub.....
    wakayi me umdaah....

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  24. पारूल आज बस इतना ही
    मैं एक लेडी गुलजार को अपने सामने खड़ा देख रहा हूं. उसे सलाम करने के लिए अपनी जगह से उठ भी रहा हूं.

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  25. कुछ अलग सी लगी... मन को छू गयी

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  26. Itni khoobsurat nazm shayad hi pehle suni ho.

    Likhte rahiye

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  27. बड़ी प्यारी सी नज़्म ....
    जिसे सिर्फ और सिर्फ महसूस किया जा सकता है .....
    समझने की हिमाकत नहीं .....!!

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  28. पारुल जी आपकी कविता बहुत अच्छी लगी..
    क्या इत्तेफाक है..आपका नाम तो काफी सुना-सुना सा लगता है..

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  29. बहुत खूब, लाजवाब बधाई

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  30. पारुल जी मैंने पहले भी कहा है ........लफ्जों पर आपकी पकड़ वाकई लाजवाब है ...............फिर एक बार आपने एक बेहतरीन रचना लिखी है, एक पुरुष के भावो के साथ ........मुझे शुरुआत बेहत पसंद आई .........लाजवाब |

    कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
    http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
    http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
    http://khaleelzibran.blogspot.com/
    http://qalamkasipahi.blogspot.com/

    एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|

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  31. बात उस रोज अपने चाँद को टांकने की थी
    जिद फिर रात की सिलवटों में झाँकने की थी
    मन से उधडी हुई एक नज़्म के धागे रखता था
    नया बुनने की हसरत लिये ही बस जगता था
    कुछ रेशमी से धागे धूप के,पलकों में उलझे थे
    नाम जिनका इन्ही आँखों ने 'सांझ' रखा था ॥

    बेपैबंद सुनहरें टांके
    रंग बिरंगे आंके बांके
    इनकी तरफ न क्यों कोई झांके ?

    लफ्जों की बेशिकन नक्काशी। वाह वाह पारुल!

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  32. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन

    सुंदर रचना के लिए साधुवाद

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  33. [बड़ी प्यारी सी नज़्म ....
    जिसे सिर्फ और सिर्फ महसूस किया जा सकता है .....
    समझने की हिमाकत नहीं .....!! -हरकीरत ]


    बात मानी न हरकीरत की और ,
    ग़ौर इस नज़्म पर भी कर आया,
    पांव छिलके पे भी पड़ा लेकिन,
    'चाँद' सा एक "ख्याल" ले आया .

    - mansoorali हाश्मी

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  34. "उसमें लिपटा अम्बर से उतरा पहला चाँद रखा था"
    - फिर भी इतना रोशन - लाजवाब प्रस्तुति

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  35. बहुत सुन्दर....

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  36. आपने तो शब्दो से चाँद पर नक्काशी कर दी...marvellous!

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  37. वाह वाह, क्या बात है,कमाल का तखय्युल और
    तगज्जुल,बहुत उच्च कोटि की कल्पना और
    उसका भावचित्रण ,आनंद आ गया!
    बहुत बधाई!

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  38. पारुल जी आपकी रचना कोमल एहसासों की मधुर प्रस्तुति है
    पढ़कर मन भीज गया ....................
    बहुत बहुत बधाई

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  39. सुंदर अभिव्यक्ति.
    यहाँ भी पधारें:-
    अकेला कलम...

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  40. भई वाह ....मज़ा आ गया .
    बहुत सुंदर रचना ...
    आभार

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  41. बहुत खूबसूरत और नए से बिम्ब लाईं आप.. फिर भी दरख्वास्त है कि ज़रा शिल्प को और कसें..

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  42. सुन्दर अभिव्यक्ति !

    तेरी करवट के तले
    मैंने अपना चाँद रखा था
    तेरी नींद के सिरहाने से
    उसको बाँध रखा था।

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  43. achhi rachna dubara padhne mein kya harz hai.....
    isliye chala aaya....

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  44. i am very sorry.too late.i was invited by indore doordarshan m p thish is an excellent poem aapki kavita ko mera salaam

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  45. बड़ी ही मासूम सी कविता है... झीने-झीने भाव लिए.

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  46. तेरी करवट के तले
    मैंने अपना चाँद रखा था
    तेरी नींद के सिरहाने से
    उसको बाँध रखा था।


    सुन्दर शब्द प्रयोग..नव्य अभिव्यक्ति..

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  47. सुंदर एहसासों से सजी रचना.

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  48. क्या बात है। जस्ट वाह..........

    अपन के लिए चांद तो क्या कहें....

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  49. बहुत प्यारी कविता कही है आपने।
    ................
    खूबसरत वादियों का जीव है ये....?

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  50. kanha ho...?
    poora mahina gujar gaya.........

    mis you and your comments.

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