When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Wednesday, September 8, 2010
एक-दूजे के लिये..!
न जाने क्यों मैं पड़ गया
मन के हेर-फेर में
सोच ने फिर एक नया आशियाना बुना
मैंने देखा रहकर वहां भी तन्हा
मगर तन्हाई ने फिर एक फ़साना बुना !
मैंने खुद से भी देर तक बात की
बस यूँ ही नहीं ऐसे एक रात की
सुबह तलक भी जैसे तैसे रुका
फिर ख़्वाबों ने नया ठिकाना बुना !
फिरता रहा इधर-उधर मन का खाली घर लिये
खुद से होकर बेखबर,तेरी खबर लिये
फिर कहीं से तुमने आकर दी दस्तक
इश्क ने मेरा खोना और तेरा पाना बुना !
कैसे भीगे दोनों उस बरसात में
दोनों की ख़ामोशी थी जब साथ में
मैं अब तक भूला नहीं वो मंजर
जब लफ़्ज़ों ने दिलों का शामियाना बुना !
देर तक एक-दूजे में दो मन जले
दूर तक संग जब हम दोनों चले
जैसे वक़्त की बंदिशों से परे
हमने जिंदगी सा कुछ 'सयाना' बुना !
ढूंढता था तुम्हे मन की चिठ्ठी लिये
या कि खुद को,तेरे रंग की मिट्ठी लिये
वो जगह जहाँ अब तलक दोनों ही नहीं थे
दोनों ने ही एक-दूजे का आना जाना बुना !
ज़िन्दगी सा सयाना और खुद से बाते.. दोनों ही थोट अच्छी है..
ReplyDeleteथोडी सी पोलिशिंग की गुंजाईश है इस बार वैसे
"न जाने क्यों मैं पड़ गया
ReplyDeleteमन के हेर-फेर में
सोच ने फिर एक नया आशियाना बुना
मैंने देखा रहकर वहां भी तन्हा
मगर तन्हाई ने फिर एक फ़साना बुना !
मैंने खुद से भी देर तक बात की
बस यूँ ही नहीं ऐसे एक रात की
सुबह तलक भी जैसे तैसे रुका
फिर ख़्वाबों ने नया ठिकाना बुना !
फिरता रहा इधर-उधर मन का खाली घर लिये
खुद से होकर बेखबर,तेरी खबर लिये
फिर कहीं से तुमने आकर दी दस्तक
इश्क ने मेरा खोना और तेरा पाना बुना !
कैसे भीगे दोनों उस बरसात में
दोनों की ख़ामोशी थी जब साथ में
मैं अब तक भूला नहीं वो मंजर
जब लफ़्ज़ों ने दिलों का शामियाना बुना !
देर तक एक-दूजे में दो मन जले
दूर तक संग जब हम दोनों चले
जैसे वक़्त की बंदिशों से परे
हमने जिंदगी सा कुछ 'सयाना' बुना !
ढूंढता था तुम्हे मन की चिठ्ठी लिये
या कि खुद को,तेरे रंग की मिट्ठी लिये
वो जगह जहाँ अब तलक दोनों ही नहीं थे
दोनों ने ही एक-दूजे का आना जाना बुना !"
क्या बताऊँ .....पारुल जी इसमें से कैसे कोई खास लाइन चुनता .......इसलिए पूरी रचना यहाँ पोस्ट कर दी है .............बस एक लफ्ज़ .......सुभानाल्लाह .........क्या कहूँ और लफ्ज़ ही नहीं मिल रहे........ऐसा दो वक़्त होता है ....जब कोई चीज़ बिलकुल ही पसंद न आये या तब जब कुछ बहुत ही पसंद आ जाये .........मुझे आपकी ये रचना बहुत ही पसंद आई है| कहीं कोई कमी नहीं .......वाह.......वाह ||
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
"न जाने क्यों मैं पड़ गया
ReplyDeleteमन के हेर-फेर में
सोच ने फिर एक नया आशियाना बुना
मैंने देखा रहकर वहां भी तन्हा
मगर तन्हाई ने फिर एक फ़साना बुना !
मैंने खुद से भी देर तक बात की
बस यूँ ही नहीं ऐसे एक रात की
सुबह तलक भी जैसे तैसे रुका
फिर ख़्वाबों ने नया ठिकाना बुना !
फिरता रहा इधर-उधर मन का खाली घर लिये
खुद से होकर बेखबर,तेरी खबर लिये
फिर कहीं से तुमने आकर दी दस्तक
इश्क ने मेरा खोना और तेरा पाना बुना !
कैसे भीगे दोनों उस बरसात में
दोनों की ख़ामोशी थी जब साथ में
मैं अब तक भूला नहीं वो मंजर
जब लफ़्ज़ों ने दिलों का शामियाना बुना !
देर तक एक-दूजे में दो मन जले
दूर तक संग जब हम दोनों चले
जैसे वक़्त की बंदिशों से परे
हमने जिंदगी सा कुछ 'सयाना' बुना !
ढूंढता था तुम्हे मन की चिठ्ठी लिये
या कि खुद को,तेरे रंग की मिट्ठी लिये
वो जगह जहाँ अब तलक दोनों ही नहीं थे
दोनों ने ही एक-दूजे का आना जाना बुना !"
क्या बताऊँ .....पारुल जी इसमें से कैसे कोई खास लाइन चुनता .......इसलिए पूरी रचना यहाँ पोस्ट कर दी है .............बस एक लफ्ज़ .......सुभानाल्लाह .........क्या कहूँ और लफ्ज़ ही नहीं मिल रहे........ऐसा दो वक़्त होता है ....जब कोई चीज़ बिलकुल ही पसंद न आये या तब जब कुछ बहुत ही पसंद आ जाये .........मुझे आपकी ये रचना बहुत ही पसंद आई है| कहीं कोई कमी नहीं .......वाह.......वाह ||
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
बहुत सारगर्भित रचना
ReplyDeleteचलिए ठिकाना तो मिला। बधाई।
ReplyDeleteजैसे चले माँ की सिलाई ऊन,
ReplyDeleteमकड़ी जुगाड़े जाल दो जून,
उसी नजाकत से आपने ये तराना बुना ..
पारुल . बहुत डूबकर लिखा है ।
ReplyDeleteammazing thoughts..in fact i couldn`t imagine this hight of thought from u.. keep it up..
ReplyDeleteits really fantastic.
मैंने खुद से भी देर तक बात की
ReplyDeleteबस यूँ ही नहीं ऐसे एक रात की
सुबह तलक भी जैसे तैसे रुका
फिर ख़्वाबों ने नया ठिकाना बुना !
bahut sunder..
बहुत खूब ... खूबसूरत ख्यालात बुने हैं ... तन्हाई और यादों के ताने बाने से बुना आशियाना ... इश्क़ के हसीन मंज़र संजोए ... प्रेम के नये एहसास समेटे ... सुंदर रचना ...
ReplyDeleteढूंढता था तुम्हे मन की चिठ्ठी लिये
ReplyDeleteया कि खुद को,तेरे रंग की मिट्ठी लिये
वो जगह जहाँ अब तलक दोनों ही नहीं थे
दोनों ने ही एक-दूजे का आना जाना बुना ! ....bahut hi umda rachna.
ReplyDeleteआपका शब्दचयन लाजवाब होता है, यही कारण है कि भावनाएँ अपने उद्दात्त रूप में प्रकट होती हैं।
………….
साँप काटने पर क्या करें, क्या न करें?
great work once again ... parul ji ... so many thoughts and with wonderful combinations ... really nice ...
ReplyDeletesubhan allah.. :)
ReplyDeleteloved the visual
ReplyDeleteI like Hindi poetry...will come back to read more.
ReplyDeleteIt awesome.
फिर ख़्वाबों ने नया ठिकाना बुना !
ReplyDeleteफिरता रहा इधर-उधर मन का खाली घर लिये
खुद से होकर बेखबर,तेरी खबर लिये
फिर कहीं से तुमने आकर दी दस्तक
इश्क ने मेरा खोना और तेरा पाना बुना !
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बेहतरीन
गहरे अहसास में डूबी रचना
पढ़कर अच्छा लगा
-
आभार
ढूंढता था तुम्हे मन की चिठ्ठी लिये
ReplyDeleteया कि खुद को,तेरे रंग की मिट्ठी लिये
वो जगह जहाँ अब तलक दोनों ही नहीं थे
दोनों ने ही एक-दूजे का आना जाना बुना
wowwwwwwwwww jus simple sweet and hearty tuching :)
Wah! V.V.Well Written, Also in RHYTHM!
ReplyDeletekp it up.
सारगर्भित रचना
ReplyDeleteअतिउत्तम प्रयास
हार्दिक बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
शब्द और भाव के ताने-बाने से बुना कविता का पैरहन.
ReplyDeleteपरस्पर सम्बन्धों की सुरुचिपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहमने जिंदगी सा कुछ 'सयाना' बुना !
ReplyDeleteढूंढता था तुम्हे मन की चिठ्ठी लिये
या कि खुद को,तेरे रंग की मिट्ठी लिये
वो जगह जहाँ अब तलक दोनों ही नहीं थे
दोनों ने ही एक-दूजे का आना जाना बुना !Parul ji,
bahut samvedanatmak aur prabhavshali rachna.
सुन्दर और भावपूर्ण-----।
ReplyDeleteजैसे वक़्त की बंदिशों से परे
ReplyDeleteहमने जिंदगी सा कुछ 'सयाना' बुना !
इस रचना ने दिल को छुआ!
देसिल बयना-खाने को लाई नहीं, मुँह पोछने को मिठाई!, “मनोज” पर, ... रोचक, मज़ेदार,...!
वो जगह जहाँ अब तलक दोनों ही नहीं थे
ReplyDeleteदोनों ने ही एक-दूजे का आना जाना बुना !"
-एहसास समेटे ..बहुत भावपूर्ण.
मैं तो निःशब्द ही हो गया...
ReplyDeleteअमेजिंग... मार्वेलस... इन्नेट फीलिंग्स प्रून अन्टू दी हार्ट...
:))
ReplyDeleteUttam....
दिगम्बर नास्वा जी से अच्छी टिप्पणी नही दे सकती इस लिये उनकी टिप्पणी को ही मेरी टिप्पणी मान लें। बहुत खूब बधाई पारुल। तुम्हारा नाम बहुत अच्छा लगता है तुम्हारी तरह।
ReplyDeleteढूंढता था तुम्हे मन की चिठ्ठी लिये
ReplyDeleteया कि खुद को,तेरे रंग की मिट्ठी लिये
वो जगह जहाँ अब तलक दोनों ही नहीं थे
दोनों ने ही एक-दूजे का आना जाना बुना
एहसासों को बहुत ही खूबसूरती से बुना है ...बहुत सुन्दर रचना ..
बड़े दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ...
ReplyDeleteआप ने जो इक दूजे के लिए बुना है - अपनत्व के अहसास से लबालब है.
truley made for each-other
ReplyDeletevartika!
khud se guftgu...aur vahi har su..amazing thoughts!!
ReplyDeleteदश्ते तन्हाई में खुश्बूए हिना किसकी है?
ReplyDeleteसाया दीवार पे मैरा था सदा किसकी है??
waah..lafzon ki katrnon se kya khayaal buna hai!
ReplyDeletebahut sundar man se likhi kavita ko sundar hona hi tha subhakamnayen
ReplyDeleteparulji sundar mun se likhi sundar kavita badhai aur dher saari subhkamnayen
ReplyDeleteparulji sundar mun se likhi sundar kavita badhai aur dher saari subhkamnayen
ReplyDeleteवो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा...कुछ यही वजह होगी ..एक दूजे का आना जाना बुनने की
ReplyDeleteSuch a nice expression of feelings.
ReplyDeleteregds
yashwant mathur
(www.jomeramankahe.blogspot.com)
nice composition..
ReplyDelete"न जाने क्यों मैं पड़ गया
ReplyDeleteमन के हेर-फेर में
सोच ने फिर एक नया आशियाना बुना
मैंने देखा रहकर वहां भी तन्हा
मगर तन्हाई ने फिर एक फ़साना बुना !
awesome !
zealzen.blogspot.com
ZEAl
.
Wow! We got wondeful poets here. I also read another - she is very good too.
ReplyDeleteExcellent.
पारूलजी बहुत ही सार्थक रचना के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDeletevery nice poem..............
ReplyDeleteupendra ( www.srijanshikhar.blogspot.com )
very nice poem..............
ReplyDeleteupendra ( www.srijanshikhar.blogspot.com )
"न जाने क्यों मैं पड़ गया
ReplyDeleteमन के हेर-फेर में
सोच ने फिर एक नया आशियाना बुना
मैंने देखा रहकर वहां भी तन्हा
मगर तन्हाई ने फिर एक फ़साना बुना !
बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें बिलकुल सच और दिल के क़रीब
जब भी लिखती हो तो अच्छा ही लिखती हो
ReplyDeleteइधर कुछ व्यस्त हूं इसलिए देर से आना हुआ
यकीनन अच्छी रचना है
सोच ने फिर एक नया आशियाना बुना
ReplyDeleteमैंने देखा रहकर वहां भी तन्हा
मगर तन्हाई ने फिर एक फ़साना बुना !
ये लाइन बहुत ही अच्छी बन पड़ी है !
ख़ूबसूरत ग़ज़ल ,रचनाकारा मुबारकबाद की मुस्तहक़ हैं।एक सुझाव विशलेषित कर के देखें। ऐसी ग़ज़लों में दो काफ़िये होने से लिखना सरल और पढना सरस हो जाता है यानि फ़साना , ठिकाना को बरकरार रखते हुए "बुना" में भी दूसरे कफ़िये का उपयोग eg. चुना, गुना,सुना,मना ,अना ;;;गुस्ताख़ी मुआफ़।
ReplyDeleteशुरू से लेकर अंत तक की एक प्रेम कहानी का एक चलचित्र सा पेश कर दिया आपने अपनी सुंदर कारीगरी में. बधाई.
ReplyDeleteहर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, ... देखिए
अत्यंत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeletewww.the-royal-salute.blogspot.com
सोच ने फिर एक नया आशियाना बुना
ReplyDeleteमैंने देखा रहकर वहां भी तन्हा
मगर तन्हाई ने फिर एक फ़साना बुना !
lovely lines.
.
hamesha ki tarah bahut hi sundar
ReplyDeleteन जाने क्यों मैं पड़ गया
मन के हेर-फेर में
सोच ने फिर एक नया आशियाना बुना
मैंने देखा रहकर वहां भी तन्हा
मगर तन्हाई ने फिर एक फ़साना बुना !
Ye rachna bahut achhi lagi.
ReplyDeletekuch panktiyan to bahut hi umda hain.
Badhaai..............
खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
ReplyDeleteआप धुआंधार लिखती हैं औऱ गजब लिखती हैं। बधाई
ReplyDeleteवंदे मातरम
"इश्क ने मेरा खोना और तेरा पाना बुना!
ReplyDeleteकैसे भीगे दोनों उस बरसात में
दोनों की ख़ामोशी थी जब साथ में
मैं अब तक भूला नहीं वो मंजर
जब लफ़्ज़ों ने दिलों का शामियाना बुना!"
दिल के शामियाने ने खामोश रहकर भी बहुत कुछ कह दिया - अति सुंदर
बहुत सुंदर -
ReplyDeleteशुभकामनाएं .
बहुत बढ़िया नज़्म है पारुल जी ....प्यारे प्यारे शब्दों का चयन ..खाब के छिलके पर अम्बर का फिसलना इतना प्यारा था कि बस यहीं पास मे रह गया ये ख़याल ...वाह
ReplyDeletedo dilo ki khubsurat dastan....bahut khoob
ReplyDeleteSuperb, what a blog it is! This webpage provides useful facts to
ReplyDeleteus, keep it up.
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