चलती है मन की कलम तो सुकूं सा है
ये कल्पनाओं का घरोंदा मेरे लिये जुनूं सा है !!
जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
उसको शब्दों में पिरोना, खुद से गुफ्तगू सा है !!
ये 'आह' है, नहीं इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
इसकी महक है,गर हर दिल तक
तो बस ये मेरी '
खुशबू' सा है !!
एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!
एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
ReplyDeleteहर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !
बहुत सुन्दर ...मन की गहराती तक पहुंची आपकी बात
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
ReplyDeleteउसको शब्दों में पिरोना, खुद से गुफ्तगू सा है !!
sunder rachna.....
'Wah' ki gujarish nahi hai, per kambakht 'wah - wah' nikal hi jaati hai.. :D
ReplyDeleteKeep pouring your thoughts...!!
ऐसे ही निर्बाध आपकी क़लम चलती रहे।
ReplyDeleteयूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
ReplyDeleteमेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
bahut khoob ..wakai mein is nazm mein rooh hai
एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
ReplyDeleteहर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !! ...ruha hilaa denevaali najm.bahut khubsurat.
adbhut.......
ReplyDeleteati sunder......
sach hee khushboo ban samaae huee ho ...........
har rachana ek se bad kar ek hai.............aur ye to .......dil me chap gayee............
aabhar
Hi..
ReplyDeleteTeri nazm ki khushböo se..
Antarman mahke sabke..
Tumhen chah na "WAH" ki ho, par..
Man ke bhav dikhe sabke..
Bahut hi khoobsurat nazm..
Main to jarur kahunga.. "WAH"..
Deepak..
वाह.... उम्दा रचना!!
ReplyDeleteKya baat hai... bahut hi badiyaa. Shaandaar.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteहर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!...wow...beautiful garland of words!
ReplyDeleteएक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
ReplyDeleteहर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!
बहुत नायब रचना.
रामराम.
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
मन से लिखी गयी रचना तो रूह से निकलती है।
ReplyDeleteBeautiful lines ,I must appriciate.
ReplyDeletePl have my best wishes.
regards,
dr.bhoopendra
jeevansandarbh.blogspot.com
एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
ReplyDeleteहर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!
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बहुत ही बढ़िया लिखा है!
बधाई!
जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
ReplyDeleteउसको शब्दों में पिरोना, खुद से गुफ्तगू सा है !!
यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
बहुत अच्छे ख्यालात..मुबारकबाद अच्छी जमीन पर चल पड़ी हैं आप.
चलती है मन की कलम तो सुकूं सा है
ReplyDeleteये कल्पनाओं का घरोंदा मेरे लिये जुनूं सा है !!
नज़्म को सुंदर लफ्ज़ दिए ......!!
ये 'आह' है, नहीं इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
ReplyDeleteये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
-वाह नहीं करते मगर आह!! की आह! में आह! तो मिला सकते हैं, बहुत सुन्दर!
ये 'आह' है, नहीं इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
ReplyDeleteये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
...बेहतरीन गज़ल का खूबसूरत शेर. इसे पढ़कर इस ब्लॉग से चुपके निकला नहीं जा सकता.
bahut hi sundar...
ReplyDeleteek kavi ke dil se nikalkar seedha kagaj par utri hai..
behtareen...
Very nice.
ReplyDeleteबहुत संजीदा रचना ..ये तो खासकर पसंद आये
ReplyDeleteयूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
....
एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!
लिखते रहिये ...बहुत अच्छा लिखते हो
सुन्दर भावों से भरी हुयी........है आपकी रचना .
ReplyDeleteyu have magic of words!
ReplyDeletehats off!
vartika!
lafzon ki sundar bangi!
ReplyDeletekya baat..kya baat..kya baat
ReplyDeleteआपकी सभी कवितायें बहुत पसंद आईं. धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत बढिया!
ReplyDeleteबेहद उम्दा....वाह
ReplyDeleteबहुत खुब । बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआप मेरे ब्लाग पर आये और अपने विचार व्यक्त किये । आप का बहुत-बहुत धन्यवाद ।
बहुत सुन्दर लिखती है आप .... मै बहुत कम ब्लोगिंग करती हू पर जब भी करती हू आपका ब्लॉग जरुर आकर पढ़ती हू!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
bahut shandar lekhan hai aapka ...... shubhkamanayen..
ReplyDeleteबेहतरीन नज्म-----।
ReplyDeleteये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
ReplyDeleteयूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
इसकी महक है,गर हर दिल तक
तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !! पारुल जी, आत्ममंथन की यही स्थितियां ही बेहतरीन रचनाओं को जन्म देती हैं। बेहतरीन रचना।
ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
ReplyDeleteयूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
इसकी महक है,गर हर दिल तक
तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !! पारुल जी, आत्ममंथन की यही स्थितियां ही बेहतरीन रचनाओं को जन्म देती हैं। बेहतरीन रचना।
'इसकी महक है,गर हर दिल तक
ReplyDeleteतो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !!'
- लेखन की सार्थकता इसी में तो है
Parul g,
ReplyDeleteयूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
bahoot shaandaar. badhai.
जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
ReplyDeleteउसको शब्दों में पिरोना, खुद से गुफ्तगू सा है !!
पारूल जी, बेहद भावपूर्ण एक उम्दा प्रस्तुति...बधाई
Khubsurat Rachna ....
ReplyDeletehar Ek shabd Kavi hriday ko bakhubi se vyakhya karta hai ...
Keep Engraving emotions on the paper...
Besh Wishes !!!
KAMAAAAAL......
ReplyDeleteati sundar.... or lafz nahi hai kehne ke liye,...
ReplyDeletemere naye blog par aapka sawagat hai..apna comment dena mat bhooliyega...
http://asilentsilence.blogspot.com/
तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !!
ReplyDeleteएक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !
यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...
सॉरी... आजकल मैं ना... थोडा सा बिज़ी हूँ... इसलिए लेट आया .........
bahut badhiya shabdo ko chayan kar unhe lay main pirona bahut achha laga.
ReplyDeleteआपके अंदर कविता कूट कूट कर भरी है क्या....या दर्द को सहारा मिल रहा है शब्दों का........
ReplyDeleteयूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
ReplyDeleteमेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
इसकी महक है,गर हर दिल तक
तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !!
वाह लाजवाब। बधाई
सोच और उस सोच से सराबोर होकर लिखना शब्दों में गज़ब की कशिश पैदा कर देता है। हमेशा की तरह बेहतर लेखन।
ReplyDeleteहालांकि गज़ल, नज़्म जैसी विधा का ज्ञान मुझमें नहीं है किंतु इसके गणित में मात्राओं की भूमिका अहम होती है और शायद वह खूबसूरत भी बन पडती है।
एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
ReplyDeleteहर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है ....
रूह से निकले हुवे शब्दों की दास्तान .... सुंदर रचना है ...
bahut hi umda rachna hai !
ReplyDeleteclassic creation ! keep it up !
ReplyDeleteहर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !
ReplyDeletewaah!
बहुत सुन्दर रचना बधाई। इ्समे से एक मिसरा मुझे व्याकरण के लिहाज़ से खटक रहा है । "इसकी महक है गर हर दिल तक, तो बस ये मेरी ख़ुशबू सा है" इस पंक्ति में "महक" केन्द्र बिन्दु है अत: "ख़ुशबू सा" की जगह "ख़ुश्बू सी" आनी चाहिये।।
ReplyDeleteये 'आह' है, नहीं इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
ReplyDeleteये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है.
bahut khoob ...
very nice composition...
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