Wednesday, August 4, 2010

मेरी कलम!


चलती है मन की कलम तो सुकूं सा है
ये कल्पनाओं का घरोंदा मेरे लिये जुनूं सा है !!
जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
उसको शब्दों में पिरोना, खुद से गुफ्तगू सा है !!
ये 'आह' है, नहीं इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
इसकी महक है,गर हर दिल तक
तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !!
एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!

57 comments:

  1. एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
    हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !

    बहुत सुन्दर ...मन की गहराती तक पहुंची आपकी बात

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  2. बहुत ही बेहतरीन रचना
    बहुत बहुत बधाई।

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  3. जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
    उसको शब्दों में पिरोना, खुद से गुफ्तगू सा है !!
    sunder rachna.....

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  4. 'Wah' ki gujarish nahi hai, per kambakht 'wah - wah' nikal hi jaati hai.. :D

    Keep pouring your thoughts...!!

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  5. ऐसे ही निर्बाध आपकी क़लम चलती रहे।

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  6. यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
    मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
    bahut khoob ..wakai mein is nazm mein rooh hai

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  7. एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
    हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !! ...ruha hilaa denevaali najm.bahut khubsurat.

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  8. adbhut.......
    ati sunder......
    sach hee khushboo ban samaae huee ho ...........
    har rachana ek se bad kar ek hai.............aur ye to .......dil me chap gayee............
    aabhar

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  9. Hi..

    Teri nazm ki khushböo se..
    Antarman mahke sabke..
    Tumhen chah na "WAH" ki ho, par..
    Man ke bhav dikhe sabke..

    Bahut hi khoobsurat nazm..
    Main to jarur kahunga.. "WAH"..

    Deepak..

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  10. वाह.... उम्दा रचना!!

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  11. हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!...wow...beautiful garland of words!

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  12. एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
    हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!

    बहुत नायब रचना.

    रामराम.

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  13. बहुत ही बेहतरीन रचना
    बहुत बहुत बधाई।

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  14. मन से लिखी गयी रचना तो रूह से निकलती है।

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  15. Beautiful lines ,I must appriciate.
    Pl have my best wishes.
    regards,
    dr.bhoopendra
    jeevansandarbh.blogspot.com

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  16. एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
    हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!
    --
    बहुत ही बढ़िया लिखा है!
    बधाई!

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  17. जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
    उसको शब्दों में पिरोना, खुद से गुफ्तगू सा है !!
    यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
    मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!



    बहुत अच्छे ख्यालात..मुबारकबाद अच्छी जमीन पर चल पड़ी हैं आप.

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  18. चलती है मन की कलम तो सुकूं सा है
    ये कल्पनाओं का घरोंदा मेरे लिये जुनूं सा है !!

    नज़्म को सुंदर लफ्ज़ दिए ......!!

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  19. ये 'आह' है, नहीं इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
    ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!


    -वाह नहीं करते मगर आह!! की आह! में आह! तो मिला सकते हैं, बहुत सुन्दर!

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  20. ये 'आह' है, नहीं इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
    ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
    ...बेहतरीन गज़ल का खूबसूरत शेर. इसे पढ़कर इस ब्लॉग से चुपके निकला नहीं जा सकता.

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  21. bahut hi sundar...
    ek kavi ke dil se nikalkar seedha kagaj par utri hai..
    behtareen...

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  22. बहुत संजीदा रचना ..ये तो खासकर पसंद आये
    यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
    मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
    ....
    एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
    हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!
    लिखते रहिये ...बहुत अच्छा लिखते हो

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  23. सुन्दर भावों से भरी हुयी........है आपकी रचना .

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  24. yu have magic of words!
    hats off!


    vartika!

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  25. kya baat..kya baat..kya baat

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  26. आपकी सभी कवितायें बहुत पसंद आईं. धन्यवाद.

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  27. बहुत बढिया!

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  28. बेहद उम्दा....वाह

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  29. बहुत खुब । बेहतरीन रचना


    आप मेरे ब्ल‌ाग पर आये और अपने विचार व्यक्त किये । आप क‌ा बहुत-बहुत ध‌न्यवाद ।

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  30. बहुत सुन्दर लिखती है आप .... मै बहुत कम ब्लोगिंग करती हू पर जब भी करती हू आपका ब्लॉग जरुर आकर पढ़ती हू!

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  31. बहुत सुन्दर
    बहुत बहुत बधाई।

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  32. bahut shandar lekhan hai aapka ...... shubhkamanayen..

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  33. ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
    यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
    मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
    इसकी महक है,गर हर दिल तक
    तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !! पारुल जी, आत्ममंथन की यही स्थितियां ही बेहतरीन रचनाओं को जन्म देती हैं। बेहतरीन रचना।

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  34. ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
    यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
    मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
    इसकी महक है,गर हर दिल तक
    तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !! पारुल जी, आत्ममंथन की यही स्थितियां ही बेहतरीन रचनाओं को जन्म देती हैं। बेहतरीन रचना।

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  35. 'इसकी महक है,गर हर दिल तक
    तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !!'

    - लेखन की सार्थकता इसी में तो है

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  36. Parul g,
    यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
    मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
    bahoot shaandaar. badhai.

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  37. जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
    उसको शब्दों में पिरोना, खुद से गुफ्तगू सा है !!

    पारूल जी, बेहद भावपूर्ण एक उम्दा प्रस्तुति...बधाई

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  38. Khubsurat Rachna ....

    har Ek shabd Kavi hriday ko bakhubi se vyakhya karta hai ...

    Keep Engraving emotions on the paper...

    Besh Wishes !!!

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  39. ati sundar.... or lafz nahi hai kehne ke liye,...


    mere naye blog par aapka sawagat hai..apna comment dena mat bhooliyega...

    http://asilentsilence.blogspot.com/

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  40. तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !!
    एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
    हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !

    यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...

    सॉरी... आजकल मैं ना... थोडा सा बिज़ी हूँ... इसलिए लेट आया .........

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  41. bahut badhiya shabdo ko chayan kar unhe lay main pirona bahut achha laga.

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  42. आपके अंदर कविता कूट कूट कर भरी है क्या....या दर्द को सहारा मिल रहा है शब्दों का........

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  43. यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
    मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है !!
    इसकी महक है,गर हर दिल तक
    तो बस ये मेरी 'खुशबू' सा है !!
    वाह लाजवाब। बधाई

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  44. सोच और उस सोच से सराबोर होकर लिखना शब्दों में गज़ब की कशिश पैदा कर देता है। हमेशा की तरह बेहतर लेखन।
    हालांकि गज़ल, नज़्म जैसी विधा का ज्ञान मुझमें नहीं है किंतु इसके गणित में मात्राओं की भूमिका अहम होती है और शायद वह खूबसूरत भी बन पडती है।

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  45. एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
    हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है ....

    रूह से निकले हुवे शब्दों की दास्तान .... सुंदर रचना है ...

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  46. हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !
    waah!

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  47. बहुत सुन्दर रचना बधाई। इ्समे से एक मिसरा मुझे व्याकरण के लिहाज़ से खटक रहा है । "इसकी महक है गर हर दिल तक, तो बस ये मेरी ख़ुशबू सा है" इस पंक्ति में "महक" केन्द्र बिन्दु है अत: "ख़ुशबू सा" की जगह "ख़ुश्बू सी" आनी चाहिये।।

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  48. ये 'आह' है, नहीं इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
    ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है !!
    यूँ लगता है हो रही हूँ धीरे धीरे,खुद से मुखातिब
    मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है.

    bahut khoob ...

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