When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Friday, July 30, 2010
'जिंदगी' और मैं!
वो जी रहा था 'जिसे'
मैं 'उसको' एक किताब में पढ़ रहा था
वो हकीक़त ही थी
'जिसको' एक मुद्दत से मैं ख्वाब में गढ़ रहा था॥
कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी
परत दर परत बुनी उस कहानी से
मेरे मन का बादल भी उमड़ रहा था ॥
बरस रहा था मन में होले होले
कुछ रंग कल्पनाओं के घोले
और मैं बस भीगता जा रहा था
वो रंग अब मुझ पर भी चढ़ रहा था ॥
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
या खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥
thanx! 4 sharng me.....u hv depth, i like it...
ReplyDeletetruely remarkable!
ReplyDeletevartika!
वाह क्या खूब लिखा है…………बहुत ही खूबसूरत रचना है सीधे दिल मे उतर गयी।
ReplyDeleteaaahhha... this needs a true appreciation...
ReplyDelete'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
या खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥
Bahut badhiya...
beautiful blog..beautiful thoughts!
ReplyDeleteमैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
ReplyDeleteया खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥ .......very nice.
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
ReplyDeleteया खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था
बहुत खूब !!
लाजवाब ||
सच ऐसा ही होता है धीरे धीरे जैसे जैसे हम किसी को आत्मसात करते जाते हैं.
ReplyDelete'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
ReplyDeleteमेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
सच ही लाजवाब
बहुत खूबसूरत रचना ...मन को छु गयी ये रचना
ReplyDeleterachna to bahut hi khoobsurat hai aur saath me aapka aana bhi achchha laga .
ReplyDeleteजिंदगी और मैं..एक खूबसूरत एहसा भरी सुंदर कविता...पारूल जी शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना है सीधे दिल मे उतर गयी।
ReplyDeleteएक दूसरे से प्रभावित होती जीवनियाँ।
ReplyDeleteमैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
ReplyDeleteया खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था
बहुत खूबसूरती से लिखी है यह रचना ....एक एक शब्द और भाव खूबसूरत
वो जी रहा था 'जिसे'
ReplyDeleteमैं 'उसको' एक किताब में पढ़ रहा था
वो हकीक़त ही थी
'जिसको' एक मुद्दत से मैं ख्वाब में गढ़ रहा था॥
सीधे साधे शब्दों में कितने खूबसूरती से बयां किया है..वाह
एक संवेदनशील हृदय की व्यथा को बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज़ दिये हैं आपने।
ReplyDeleteआखिरी चार पंक्तियाँ तो गज़ब की ही बन गई हैं।
रचना का आगाज और अंजाम बहुत सुन्दर है!
ReplyDelete--
आज के चर्चा मंच पर इसकी चर्चा है न!
बहुत खूब ....शुभकामनायें !
ReplyDeleteBeautiful!! Tum thak nahi jaati apni taarif sunte sunte...
ReplyDelete:)
बेहद पसंद आई।
ReplyDeleteBahut hi shaandaar rachna.....gahraai liye hue.....
ReplyDeleteApko haardik shubkaamnaayen.....
sadaiv kee bhati adbhut abhivykti .......
ReplyDeleteकुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
ati sunder........
bahut khoob!
ReplyDelete'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
ReplyDeleteमेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
bahut sundar abhvyakti.
ReplyDeleteपारूल जी, वाकई आपने जिंदगी को करीब से देखा है।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
very good.
ReplyDeleteniceeeeee
ReplyDeleteअरे! आप टेक्नीकलर से ब्लैक एंड व्हाईट कैसे हो गयीं???
ReplyDeleteबहुत गहरे विचार...सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!
कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ReplyDeleteख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी
...........................
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
..................................
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था
ULTIMATE !
vakai..."कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी"
सॉरी! मैं फिर लेट हो गया.... पारुल... आपकी कवितायेँ सचमुच दिल में उतर जातीं हैं... आपके पेन और विचार को सलाम...
ReplyDeleteरिगार्ड्स
महफूज़...
Very well written!
ReplyDeletebahut khoob dil jeete liya iss dard ne wah wah wah..............
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों की नक्काशी की है आपने
ReplyDeleteसुन्दर भाव
सुन्दर रचना
बहुत ही लाजबाब पोस्ट
ReplyDeleteकमाल की प्रस्तुति ..................
'उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
ReplyDeleteऔर उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥'
- सुन्दर.
Bohot Sundar....:-) bas aur kya kahun....
ReplyDeleteएक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
ReplyDeleteहर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!
भीनी भीनी सी नज़्म...या रूह!
बहुत खूब
Nice porul...dil ko chhu gaya yar... thanks for sharing :) and also thankx for comment on my blog.
ReplyDeleteफिर वही कहूंगा। पता नहीं कोई ऐसी बात होती है जो मुझे आपकी रचनाओं में अपनी सी लगती है। लेखक, कवि की यह सफलता है।
ReplyDelete'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था....\
बहुत पसन्द आई यह पंक्ति..।
ख्वाब और हक़ीकत से एककार होती रचना लाजवाब है ...
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