वो एक लिबास ख्वाब का
जिसे पहनकर तू फबता था
कि तेरी उस चाशनी में वो फीका सा चाँद
किस तरह से दबता था
रोज करता था शिकायत
रोज एक नयी रवायत
रात के इश्क में किसी
दीवाने सा जलता था ॥
एक अम्बर का चुलबुला
दूजा मेरे मन का बुलबुला
मुझे दोनों की फिक्र थी
तो सारी रात जगता था ॥
बड़े कच्चे से थे धागे
कहीं उलझे,कहीं टूटे
लफ़्ज़ों की गिरफ्त में
मैं दोनों को ही रखता था ॥
एक ऐसी नींद बुनता था
जहाँ दोनों ही सो जाये
और फिर सारा जहाँ
ख्वाब की चाशनी में
गोल सी वो नज़्म चखता था॥
पारूल जी,
ReplyDeleteक्या बात है..
आज तो आपने बड़े-बड़े शायरों की छुट्टी कर दी है
बहुत ही शानदार.
और फिर सारा जहाँ
ReplyDeleteख्वाब की चाशनी में
गोल सी वो नज़्म चखता था॥
सुंदर रचना...!!!
sir ye aapka baddapan hai!thanks a lot :)
ReplyDeleteवो एक लिबास ख्वाब का
ReplyDeleteजिसे पहनकर तू फबता था
कि तेरी उस चाशनी में वो फीका सा चाँद
किस तरह से दबता था
.....बहुत ही शानदार
सुन्दर प्रवाहमान भाव।
ReplyDeleteलाजवाब ! शानदार रचना !
ReplyDeleteवो एक लिबास ख्वाब का
जिसे पहनकर तू फबता था
कि तेरी उस चाशनी में वो फीका सा चाँद
किस तरह से दबता था
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
बहुत खूब !
ReplyDeleteपारूल जी, आपके भावों और सोच में ओस सा नयापन है।
ReplyDelete................
नाग बाबा का कारनामा।
महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?
रिश्ते भी तो कच्चे धागों की तरह होते हैं .... संभाल कर रखने पढ़ते हैं ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत नज़्म है ...
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
ReplyDeleteRegards...
Mahfooz..
बेहतरीन नज़्म
ReplyDeleteख्वाब की चाशनी .. और फिर नज़्म का चखना
बहुत खूब
बहुत मर्मस्पर्शी रचना !..बधाई
ReplyDeletemeethi meethi pyaari si nazm
ReplyDeleteaur khwaab ka libaas bahut khoob
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteHi,
ReplyDeleteagar samajhta wo bhavon ko..
fir na usne poochha hota...
wo muskaan nirarthak jaati..
gar na usne samjha hota..
aankhon ki bhasha wo padhta...
to na tujhse poochh wo paata...
sang main uske kya hai milta?
samajh swatah hi gaya wo hota..
Achha hai uttar de daala..
usne bhi socha to hoga...
tera uttar sunkar uska...
dil uska bhi dhadka hoga...
jis se bhi gar prem agar ho..
behtar hai sab batla den..
ek tarfa na prem rahe wo..
priyatam ko bhi jatla den...
Sundar bhav...donon kavitaon main baat ek hai bas shabd alag hain..
Deepak..
hi...
ReplyDeleteSundar nazm...
Deepak
बहुत सुन्दर नज़्म....पढते पढते खो सी गयी...
ReplyDeletekhab ka pehna jana....khaab ki chashni ..aur gol si nazm ..sab kuch bahut pyara hai ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteaap aisa likhti ho ki har baar aana padta hai........god bless you!
ReplyDeletekafee hat kar aur achchha lekhan hai aapka. badhai
ReplyDeleteएक उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं
सुन्दर एवं मनमोहक प्रस्तुति,
ReplyDeleteआभार...
shivam ji bahut bahut shukriya charcha ke liye!
ReplyDeletebaaki sabhi ka bhi bahut bahut aabhar!
चाँद का चाशनी में होंकर भी फीका रहना.. कमाल की कल्पना है..
ReplyDeleteshabdon ka chayan achchha hai..
ReplyDeletesaare urdu ke shabdon ke beech FABTA shabd kuchh atpata sa laga..
ReplyDeleteबहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
ReplyDeletemeri kavitaon par comment karne ke liye Parul ji aur sabhi sathiyon ka dhanyavad... main nhi jaanta ki mene jo likha wo kis star ka tha.. bas man me kuchh shabd aaye aur unhe likh diya.. ye mera kaam nhi hai.. basically main cartoonist hun.. mujhe aur zyada khushi hogi agar aap mere cartoons par comment karen.
ReplyDeleteसुन्दर नज़्म..!
ReplyDeleteDi,Thank you.... आप मेरा जो चाहे वो चित्र अपने ब्लॉग के लिए ले सकती है ...मुझे इंतज़ार रहेगा मेरे लिए बालगीत का !
ReplyDeleteबड़े कच्चे से थे धागे
ReplyDeleteकहीं उलझे,कहीं टूटे
लफ़्ज़ों की गिरफ्त में
मैं दोनों को ही रखता था ॥
...Gahre marm ko chuti nazam...
एक अम्बर का चुलबुला
ReplyDeleteदूजा मेरे मन का बुलबुला
मुझे दोनों की फिक्र थी
सुंदर रचना...
बहुत दिलचस्प, तुकबंदी पर आधारित आपकी नज्में बहुत भाती है, अच्छी बात यह है की यह जबरदस्ती सी नहीं लगती और कहीं-कहीं तो हैरान करती है. शब्दों में दोहराव भी नहीं लगता और कल्पना के साथ खुबसूरत शब्द चयन से एक मीठी सी नज़्म यहाँ तैयार होती है. यह काबिल-ए- तारीफ़ है... मुझे इसकी टियुशन दे दीजिये.
ReplyDeleteएक नहीं आपकी कई ऐसी कवितायेँ हैं जो सादगी से लिखने और सोचने पर ताज़ा महसूस कराती हैं.
sagar ji itni hoslaafjayi ke liye dhanywaad..baaki sabhi ka bhi bahut aabhar!
ReplyDeletebehad khubsurat..aur jo khab ki upmaayein hain...bahut hi badhiya
ReplyDeletejitnee tareef kee jae kum hai............
ReplyDeletenishavd kar dene kee taakat hai ise lekhan me.....
umda najm badhai swikaren
ReplyDeleteपारूल जी,
ReplyDeleteशानदार पंक्तियाँ हैं, सुंदर रचना. आभार.
पहले भी एक-दो बार इधर आया हू लेकिन अभी सागर के ही ब्लोग से यहा पहुचा हू...
ReplyDeleteसागर ने जो कहा है वो मुझे पुरानी और कविताये पढने के लिये फ़ोर्स करता है.. देखिये जल्द ही..
इस नज़्म का फ़्लो अच्छा लगा और ’चाशनी मे भी फ़ीकी’ के क्या कहने.. वाह..
एक ऐसी नींद बुनता था
ReplyDeleteजहाँ दोनों ही सो जाये
और फिर सारा जहाँ
ख्वाब की चाशनी में
गोल सी वो नज़्म चखता था॥
Wah behatareen.
एक ऐसी नींद बुनता था
ReplyDeleteजहाँ दोनों ही सो जाये
और फिर सारा जहाँ
ख्वाब की चाशनी में
गोल सी वो नज़्म चखता था॥
वाह बहुत खूब अच्छी लगी कविता। शुभकामनायें
वाह...ख्वाब का लिबास और लफ्जों की गिरफ्त...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
bahut hisundar rachna jiski khoobsurati ki chashni se nikalne ka dil hi nahi karta.
ReplyDeletepoonam
well done dear! :)
ReplyDeletenew theme, new pic.. nice change Parul ji.. ur new pic is specially very beautiful...B/w photos are always more lively then colours.. isn`t it..
ReplyDeleteबहुत खूब..गुलज़ार याद आ गए ...
ReplyDeletekuch parts to ekdum awesome hain :)
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