जिंदगी अपनी हद में बड़ी हताश सी है
जैसे हसरत कोई सदियों से बस 'काश' सी है ॥
ख्वाब,कहाँ किसी का होंसला बुलंद करते है
ये तो बस जब चाहे,आंखों को बंद करते है
अब तो मन को भी जैसे उजालों की आस सी है ॥
ख़ुद को ख़ुद ही न अगर समझें,तो फिर कौन जाने ?
अक्स मिल जाए कहीं अपना तो लोग पहचाने
मुझे हर आईने में अपनी ही तलाश सी है॥
आज तक जाना नहीं क्या सुकूँ हैं खुदा होने में
हाँ !मगर बहुत तकलीफ होती है ख़ुद से जुदा होने में
इसलिए शायद अब भी मुझको इंसां बने रहने की प्यास सी है ॥
बहुत ही सुन्दर भाव!!
ReplyDeleteअच्छा लगा !!
ReplyDeleteअच्छे भावों से सजी रचना
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteदिल की गहराई से उपजी एक कविता!बधाई!
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