Monday, August 10, 2009

दौर..


वो दौर कुछ अलग भी था
मेरे पास तुम न थे मगर और सब भी था ॥
जो तुम मिले तो जैसे वो सब खत्म हो गया
तुम ज्यादा हो गए बाकी कम हो गया
अब हाल है ये जिंदगी में बस तुम ही रह गए
एक दौर था वो जब जिंदगी का और कोई मतलब भी था॥
मन्दिर की पूजा याद थी,मस्जिद की इबादत याद थी
ये जिंदगी मेरी तब उस खुदा के बाद थी
तुम क्या मिले कि दिल की इबारत बदल गई
आज इश्क ही खुदा मेरा,तब और कोई मजहब भी था॥
तारों से जगमगाते थे तब सूनी रातों के दीये
मैं ख़ुद में ही रहता था बस अपने सपनों को लिए
तुम क्या मिले जैसे मैंने वो सारे सपने खो दिए
एक ख्वाब मिला तुमसे नया,जहाँ तेरे होने का सबब भी था॥

9 comments:

  1. जो तुम मिले तो जैसे वो सब खत्म हो गया
    तुम ज्यादा हो गए बाकी कम हो गया
    अब हाल है ये जिंदगी में बस तुम ही रह गए
    एक दौर था वो जब जिंदगी का और कोई मतलब भी था॥
    BAHUT HI SUNDAR PANKTIYA JO DIL KARIB LAGI.....KHUBSOORAT

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  2. मन्दिर की पूजा याद थी,मस्जिद की इबादत याद थी
    ये जिंदगी मेरी तब उस खुदा के बाद थी
    तुम क्या मिले कि दिल की इबारत बदल गई
    आज इश्क ही खुदा मेरा,तब और कोई मजहब भी था॥

    वाह लाजवाब रचना।

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  3. likhte rahiye,taki humko acche se accha padhne ko mile..keep it up!

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  4. waah lajawab,ye ehsaas bhi gazab raha.

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