वो दौर कुछ अलग भी था
मेरे पास तुम न थे मगर और सब भी था ॥
जो तुम मिले तो जैसे वो सब खत्म हो गया
तुम ज्यादा हो गए बाकी कम हो गया
अब हाल है ये जिंदगी में बस तुम ही रह गए
एक दौर था वो जब जिंदगी का और कोई मतलब भी था॥
मन्दिर की पूजा याद थी,मस्जिद की इबादत याद थी
ये जिंदगी मेरी तब उस खुदा के बाद थी
तुम क्या मिले कि दिल की इबारत बदल गई
आज इश्क ही खुदा मेरा,तब और कोई मजहब भी था॥
तारों से जगमगाते थे तब सूनी रातों के दीये
मैं ख़ुद में ही रहता था बस अपने सपनों को लिए
तुम क्या मिले जैसे मैंने वो सारे सपने खो दिए
एक ख्वाब मिला तुमसे नया,जहाँ तेरे होने का सबब भी था॥
जो तुम मिले तो जैसे वो सब खत्म हो गया
ReplyDeleteतुम ज्यादा हो गए बाकी कम हो गया
अब हाल है ये जिंदगी में बस तुम ही रह गए
एक दौर था वो जब जिंदगी का और कोई मतलब भी था॥
BAHUT HI SUNDAR PANKTIYA JO DIL KARIB LAGI.....KHUBSOORAT
बढ़िया
ReplyDeleteमन्दिर की पूजा याद थी,मस्जिद की इबादत याद थी
ReplyDeleteये जिंदगी मेरी तब उस खुदा के बाद थी
तुम क्या मिले कि दिल की इबारत बदल गई
आज इश्क ही खुदा मेरा,तब और कोई मजहब भी था॥
वाह लाजवाब रचना।
awesome blog........superb!!
ReplyDeletelikhte rahiye,taki humko acche se accha padhne ko mile..keep it up!
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर
ReplyDeletewaah lajawab,ye ehsaas bhi gazab raha.
ReplyDeletejust superb//
ReplyDelete---
राम सेतु – मानव निर्मित या प्राकृतिक?
सुन्दर रचना,
ReplyDeleteबधाई।