Monday, June 22, 2009

एक आंसूं


वो नम कर देता है सब कुछ
कभी चिंगारी सा जलता है
वो एक आंसूं लम्हा दर लम्हा
मेरे जेहन में पलता है॥
रोज वो दर्द बोता है
या ख़ुद एक दर्द होता है
चुभता है जेहन में
और मुझको खलता है॥
मैं खाली सा हो जाता हूँ
उसको जब ख़ुद में पाता हूँ
यूं लगता है जैसे
अन्दर ही अन्दर सब पिघलता है॥
मैं रो भी नही पाता
उसका हो भी नही पाता
और एक वो है जो
हर लम्हा मेरे साथ चलता है॥
न जाने पलकों का दरवाजा
क्यूँ इसी आंसूं से खुलता है ?
सब डूबा सा लगता है
जब वो आंखों में मचलता है॥
आज सोचता हूँ उसको
तो मालूम चलता है
समन्दर में बहुत ढूँढोगे
तो बस मोती ही मिलता है॥

7 comments:

  1. bahut hi sundar bhaw hai .........yah hameshaa lamha dar lamha satha chalata bahut badhiya

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  2. वो एक आंसूं लम्हा दर लम्हा
    मेरे जेहन में पलता है॥
    अच्छी अभिव्यक्ति

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  3. अधर रहें खामोश परन्तु नयन बोल देते हैं।
    आँसू तो पल भर में सारा भेद खोल देते हैं।।

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  4. भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

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  5. BAHUT KHOOB.
    PALKO KA DARWAJA AANSUO SE KHULTA H.

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  6. ्बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
    पूनम

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