एक नज़र तो उठा के देख,मैं तेरी परछाई हू
शाम के ढलते ढलते तुझ में सिमट आई हू ॥
न छुपा पाओगे मुझसे तुम कोई भी बात
सुबह की सुनहरी धूप में होगा फिर से अपना साथ
दिन ढल जाए चाहे हो भी जाए रात
मैं हमेशा से ही तेरी तन्हाई हू ॥
न ये समझ, मैंने पाया है तुझे खो जाने को
न फासला समझती हू तेरे सो जाने को
ख्वाब जैसे ही जाग जाते है तुम में
जान ले मैं ही उन्ही ख़्वाबों में समायी हू ॥
तू,मुझे कुछ तो अलग समझ इस जहाँ से
कोई अनजाना सा पल दिल लाये ही क्यूँ कहाँ से
जो प्यार तू अपने अन्दर लिए फिरता है
सच तो ये है मैं उसी प्यार की गहराई हू ॥
सुन्दर भाव
ReplyDeleteजो प्यार तू अपने अन्दर लिए फिरता है
ReplyDeleteसच तो ये है मैं उसी प्यार की गहराई हू ॥ "
इन पंक्तियों ने खासा प्रेम-मय कर दिया. वैलेंटाइन की शुभकामनायें .
बहुत सुन्दर भाव!
ReplyDeletebahut sundar.....
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