When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Monday, February 16, 2009
उलझन..
नही जानता मैं जिंदगी के किस अकेलेपन में था
या कि ये अकेलापन बस मेरे ही मन में था ॥
खींचा चला जा रहा था मैं अपनी प्यास से
जुड़ नही पा रहा था अपने मन की किसी भी आस से
थक गया था मैं शायद अपनी ही तलाश से
ख़ुद के होने का एहसास बस दर्पण में था ॥
दर्द उठ रहा था आत्मा की चोट से
देख रहा था ज़ख्म को जब मन की ओट से
खामोशी चिपकती जा रही थी इस तरह से होंठ से
हर बेजुबां सा लफ्ज़ बस अपनी धुन में था ॥
डूबता जा रहा था अपने ही किसी ख्वाब में
और चुन रहा था आंसूं ही जवाब में
छुपा भी रहा था आँखें किसी नकाब में
भीगता जा रहा मैं किसी सावन में था ॥
पर जब मिला न मुझे कुछ भी तेरी ओर से
छुडा कर चला ख़ुद को मैं जिंदगी की डोर से
और जब मिला मैं एक नई भोर से
पाया मैं अब तक बस रातों की उलझन में था ॥
लगता है कोई मुझे मेरी ही कहानी सुना रहा है। बहुत खूब। खुदा आपको कामयाब करे।
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteछुपा भी रहा था आँखें किसी नकाब में
ReplyDeleteभीगता जा रहा मैं किसी सावन में था ॥
waah bahut khubsurat nazm
दर्द उठ रहा था आत्मा की चोट से
ReplyDeleteदेख रहा था ज़ख्म को जब मन की ओट से
खामोशी चिपकती जा रही थी इस तरह से होंठ से
हर बेजुबां सा लफ्ज़ बस अपनी धुन में था ॥
क्या बात है पारुल बहुत ख़ूब लिखा आपने।
ख़ामोशी चिपकती जा रही थी इस तरह होंठ से
अंतर्मन से निकले कुछ शब्द एक खूबसूरत नज्म बन गए हैं।
ReplyDeleteपारुल जी, ये वास्तव में ख़ूबसूरत बात कह गए हो आप। वाक़ई। ख़ुदा नज़रे-बद से बचाए। ऊँची बात है आपकी रचना में।
ReplyDeleteपारुल जी, ये वास्तव में ख़ूबसूरत बात कह गए हो आप। वाक़ई। ख़ुदा नज़रे-बद से बचाए। ऊँची बात है आपकी रचना में।
ReplyDeletebahut sundar likha hai aapne...
ReplyDeleteParul,
ReplyDeletebahut sargarbhit evam bhavpoorn kavita .badhai.
Poonam