Friday, December 19, 2008

एक कलम !!


मैं भटकी हू दर दर
जिंदगी के लिए फ़कीर सी !!
बह गई आंसूं बन
हर आरजू नीर सी !!
हाथ में थी बस कलम
"आह" ज्यादा,लफ्ज़ कम
लिख गई दर्द को
अपनी तक़दीर सी !!
मैं न रीझी कभी
हीर रांझे की प्रीत पर
मैं न झूमी कभी
प्रेम के किसी गीत पर
मैंने हर व्यथा बुनी
बस जिंदगी की रीत पर
और बन गई वो व्यथा
मेरी ही तस्वीर सी !!
मैं सोच में न थी
अपनी किसी भी हार पर
मैं न रुकी कभी
किसी अधूरे प्यार पर
जो भी कहा था बस
सच की धार पर
मेरी सचाई बन गई
मेरे लिए ज़ंजीर सी !!
रब!जब भरके भेजे
भाव तूने रग में
मैंने वही बांटा सभी से
तेरे बेदर्द जग में
मैंने बस वही लिखा
जो खामोशी कहती गई
मैंने बस मिटानी चाही
दिलों में खिंची लकीर सी !!

4 comments:

  1. tum to revolutionary poem bhe likhne lagi :)
    very nice & sound ..!!

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  2. बहुत बढ़िया!

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  3. Parul ,
    Apkee kavitaon,Gazalon men itnee kashish,dard,chhupa hai.Ap bhavon ke hee hisab se shbd bhee selekt kartee hain .isee liye apkee kavitaen bar bar padhne ka man hota hai.
    Poonam

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