मैं आया था तुमसे दूर यही सोचकर
कि तुमसे,मन निकले
मेरी जिंदगी का मेरे ख़ुद के लिए
कोई अपना पन निकले !!
मैं सोंचू ख़ुद के लिए
जलाकर मन के दीये
और उस रोशनी से कोई
जीवन की किरन निकले !!
मैं ख़ुद से जुड़ जाउं आहिस्ता
बनाकर ख़ुद से नया रिश्ता
कि मेरा धुंधला सा वजूद
बनकर नया दर्पण निकले !!
कि कोई बात न हो खाली
न रह जाए होंसला सवाली
मीठी सी कशमकश में
खामोशी से,लफ्जों की अनबन निकले !!
बांधे मुझे,ख़ुद से डोर कोई
जिसका न हो ओर छोर कोई
ख़ुद की, ख़ुद में घुल जाने की
क्षितिज जैसी लगन निकले !!
bahut sundar rachana...
ReplyDeletesaari ki saari nazm ka apna ek sukhad flow hai ....
मैं ख़ुद से जुड़ जाउं आहिस्ता
बनाकर ख़ुद से नया रिश्ता
ye lines mujhe bahut acchi lagi .
bahut bhaavpoorn rachna..
badhai
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.... लिखती रहिये
ReplyDeleteमीठी सी कशमकश में
ReplyDeleteखामोशी से,लफ्जों की अनबन निकले !!
बांधे मुझे,ख़ुद से डोर कोई
जिसका न हो ओर छोर कोई
बहुत शानदार लाइनें हैं। दिल ख़ुश हो गया। आपका ब्ल़ग भी शानदार है।
मैं सोंचू ख़ुद के लिए
ReplyDeleteजलाकर मन के दीये
और उस रोशनी से कोई
जीवन की किरन निकले
सुन्दर भाव बहुत शानदार.
Parulji,
ReplyDeleteapkee kavitayen teenon hee achchhee hain.Ek salah thee kavita kampoj karne ke bad post karne se pahle matraen chek kar liya karen.Kabhee kabhee kuchh galatiyan rah hee jatee hain.Halanki aisa sabhee ke sath hota hai.
Kavitaon ke liye badhai.
Hemant Kumar
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..लिखते रहे
ReplyDeleteह्म्म, बहुत खूब!
ReplyDeleteशुभकामनाएं
शायरी में कोई दिलचस्पी तो नहीं फिर भी आपकी तस्वीर का शुक्रिया कि हम आ गये यहां.
ReplyDeleteव्यू लार्ज पिक्चर पे जो क्लिक की आपको देख के लगा कि सफल हो गयी.
लिखती रहिये शायद आपकी वजह से कुछ और शायरी के मुरीद पैदा हो जाये.
शुभकामनायें.
thanx to all of u..
ReplyDeleteमैं सोंचू ख़ुद के लिए
ReplyDeleteजलाकर मन के दीये
और उस रोशनी से कोई
जीवन की किरन निकले !!"
Kamaal ki bhavna. Mann khush ho utha padhkar.
Regards,
Shashwat
Parul ji rachna pasand aai.........
ReplyDeleteमैं सोंचू ख़ुद के लिए जलाकर मन के दीये
ReplyDeleteऔर उस रोशनी से कोई जीवन की किरन निकले !!
मैं ख़ुद से जुड़ जाउं आहिस्ता बनाकर ख़ुद से नया रिश्ता
कि मेरा धुंधला सा वजूद बनकर नया दर्पण निकले !!
कहावत है कि '' जलता हुवा दीया ही बुझे हुवे दीये को जला सकता है /
और जब आपका कवि ह्रदय दीया जलेगा तो निशिचत ही कविता कि नई किरण निकलेगी /
सुंदर रचना
sunder abhivyakti
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