जुबां खामोश है
अब दिल से क्या बयां करे
क्यों आज अपनी ही खामोशी को रुसवा करे!!!
लफ्ज़ ख़ुद इतने जज्बाती हो उठे है
कि बात ठीक से निकले, इतनी वफ़ा करे!!!
कुछ वो कहें अपनी, कुछ तुम कहो अपनी
एक लफ्ज़ दूजे लफ्ज़ से मोहब्बत बेपनाह करे !!!
ज़र्रा ज़र्रा दिल का हो जाए रोशन
गुफ्तगू दिल से दिल तक इस तरह करे!!!
मैं मैं न रहूं, तुम तुम न रहो
दोनों हो जाए एक ,बस अब खुदा करे !!!
और ये खामोशी ओढ़कर जब जब बैठे ये लफ्ज़
दो रूहों से एक जिंदगी बना करे!!!
kya baat hai ...
ReplyDeletebahut dino ke baad koi etni romantic poem padhe :-)
Parul jee at her best :) This one is truly great :) Keep it up!
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