वो जो अक्सर फजर से उगा करते है
सुना है दिल से बहुत धुआं करते है।
जलता है इश्क या खुद ही जल जाते हैं
कलमे में खूब चेहरे पढा करते है।।
फजल की बात पर खामोशी थमा देते है
बेवजह ही क्यों खुद को खुदा करते है।
आयतें रोज ही लिखते है मदीने के लिए
और अक्सर मगरिब में डूबा करते है।।
मेरी रूह तक भी आती है लफ्जों की आहट
मुद्दतों से जो ऐसे जख्म लिखा करते है।।
one word....touchy!
ReplyDeleteVartika
रूह तक आती आवाजों से जख्म भी हरे रहते हैं ...
ReplyDeleteकमाल का दर्द लिए है ये नज़्म ...
लाजवाब ....
ReplyDeleteIntense emotions you have
Very creative
बहुत लंबे समय के बाद फिर लौटा ..आपके इस पटल पर...
ReplyDeleteयकीन मानिए लिखे को पढ़ना यानी रूह तक को तृप्त कर जाना है। इत्मीनान से अभी बहुत कुछ पढ़ना शेष है..