Friday, May 11, 2018

जख्म....



                         


वो जो अक्सर फजर से उगा करते है
सुना है दिल से बहुत धुआं करते है।
जलता है इश्क या खुद ही जल जाते हैं
कलमे में खूब चेहरे पढा करते है।।
फजल की बात पर खामोशी थमा देते है
बेवजह ही क्यों खुद को खुदा करते है।
आयतें रोज ही लिखते है मदीने के लिए
और अक्सर मगरिब में डूबा करते है।।
मेरी रूह तक भी आती है लफ्जों की आहट
मुद्दतों से जो ऐसे जख्म लिखा करते है।।



4 comments:

  1. one word....touchy!




    Vartika

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  2. रूह तक आती आवाजों से जख्म भी हरे रहते हैं ...
    कमाल का दर्द लिए है ये नज़्म ...
    लाजवाब ....

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  3. Intense emotions you have
    Very creative

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  4. बहुत लंबे समय के बाद फिर लौटा ..आपके इस पटल पर...
    यकीन मानिए लिखे को पढ़ना यानी रूह तक को तृप्त कर जाना है। इत्मीनान से अभी बहुत कुछ पढ़ना शेष है..

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