वो बेवजह ही एक वजह होना
एक चाह......
न खुद में ही खुद का होना !
रोज आवाज देना
और कहना खुद
से
रात होते ही ख़्वाबों को
बस सुला देना !
मैं अपनी हूक को
एक नज़्म में भर आया हूँ
कोई पूछे
तो बस
चुपके से उसे सुना देना !
वो तन्हाई जिसका
सौदा करना है अभी बाकी
जिंदगी आये तो
उसका मौल बता देना !
मैं उसके ख़त
अभी ही जला आया हूँ
मेरी ख़ामोशी को
हो सके तो और सुलगा देना !
वो अनजाने ही बनता
फिर एक रेत का घर
एक कतरे में ही
उसको यूँ ही बहा देना !
किसी के हाथ लग जाये न
ये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
ye lines achhi lagi
- Tarun
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
बहुत खूब..गहरी रचना!
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
OOPS........!!
ReplyDeletemindblowing!
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
बेहतरीन रचना ...!!
बहुत सुन्दर रचना ............लाजवाब
ReplyDeleteकिसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
bahut badhiyaa parul ,agar apni shakti ko rachnatak aadhaar de diyaa jaaye to behatar
ReplyDeleteपारुल जी
ReplyDeleteसच में कितनी गहराई में डुबो देती है आपकी रचनाये
****
मैं अपनी हूक को
एक नज़्म में भर आया हूँ.......
*
किसी के हाथ लग जाये न
ये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना...
****
....ये पंक्तियाँ तो दिल को छु गई
ye hook har man tak hai..
ReplyDeletebahut hi sundar!
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
----------
Parul ji aapki kalam khanjar se kum nahi...
behatarin rachna!
सुन्दर अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteआभार...
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना ! wahhh bahut khoob.....abhiwyakti ko kya kalam se sawara hai!!!
mujhe ye laenen bahut sundar lagi!!
mere blog par bi padharen !!
Jai HO Mangalmay Ho!!
Get your book published.. become an author..let the world know of your creativity. You can also get published your own blog book!
ReplyDeletewww.hummingwords.in
Bahut hi badhiya...
ReplyDeleteरात होते ही ख़्वाबों को
बस सुला देना !
मेरी ख़ामोशी को
हो सके तो और सुलगा देना !
किसी के हाथ लग जाये न
ये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
Bahut hi behtar.. bahut sundar..
:)
मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना
bahut sundar ,swantrata divas ki badhai .jai hind .
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
Hi..
ReplyDeleteMan ki hook se ubhri rachna...
padhkar hota hai abhaas..
shabdon main bandhe ho jaise...
man ke kuchh komal ahsaas..
Sundar Rachna...
Deepak...
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteant ki panktiyaan to bahut hi zyada zabardast hai....bhool nahi sakoonga inko...
ReplyDelete"hook" ka arth nahi maloom..chhama kare
मेरे आजाद भारत को अब देखिए,
ReplyDeleteहो रहे कत्ल हैं बेसबब देखिए,
अब नई नस्ल को बेअदब देखिए,
कैसे आ पायेगा मुल्क में अब अमन।
उन शहीदों को मेरा नमन है नमन।।
हूक को भर कर सुन्दर नज़्म बना लेना हुनर का काम है ...!
ReplyDeletevery emotional poem, full of feelings! sorry that i donot come to ur blog regularly.. now i will...
ReplyDeleteconcluding lines of the poem are truly magnificent... किसी के हाथ लग जाये न
ये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
...
ye hook dil ki hai ya kalam ki..jo bhi hai..hum mein bhi hook paida karti hai..fantastic job!
ReplyDeleteshbd hain ki......jadoo!
ReplyDeleteawesome!
@vartika
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteमैं उसके ख़त
ReplyDeleteअभी ही जला आया हूँ
मेरी ख़ामोशी को
हो सके तो और सुलगा देना !
इस ख़ामोशी ने बहुत सुलगाया है अंदर ही अंदर.. धुआं है आग कहीं नज़र नहीं आती.
बहुत ही बढिया सम्प्रेषण. आनन्द ..
आभार
मनोज खत्री
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
विकल्प बहुत खूबसूरत है
कविता बहुत खूबसूरत है
bahut sundar!
ReplyDeletevisit also www.gaurtalab.blogspot.com
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
सुंदर रचना से रूबरू करने के लिए धन्यबाद.
rachanaravindra.blogspot.com
एक सुंदर हूक!
ReplyDeleteदिल को छू गई .
बहुत खूब......!!
ReplyDeletekaha se laati hain ye shabdon ki khoobsurti....???
ReplyDeletekuchh to gadbad hai...hummm
पारुल जी
ReplyDeleteसच में कितनी गहराई में डुबो देती है आपकी रचनाये
सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी
ReplyDeleteकरते है साक्षर ही अधिक भ्रूण हत्या ...............!
ReplyDeleteplz vist parul ji...
my own blog
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
पीड़ा शब्दों में उतरे, शस्त्रों में नहीं।
ReplyDeleteकाफी देर से पड़ी आपकी कविता बहुत खुबसूरत नज़्म है ......एक सवाल है अगर आप इमानदारी से जवाब दें .....मेरी नज़र में एक पुरुष के लिए एक महिला के मन की व्यथा कह पाना बहुत मुश्किल होता है ....और मुझे लगता है की महिला के लिए भी एक पुरुष के अंतर्मन की व्यथा कह पाना उतना ही मुश्किल है .....अगर आपने वास्तव में ये काम किया है, तो मैं आपको सलाम करता हूँ ....
ReplyDeleteआपकी रचनाये आगे भी पड़ता रहूँ, इसलिए आपको फॉलो कर रहा हूँ....
कभी फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आइयेगा -
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना
KYA BAAT HAI...... BAHUT HI BHAVPURN
POST.
वो अनजाने ही बनता
ReplyDeleteफिर एक रेत का घर
एक कतरे में ही
उसको यूँ ही बहा देना !
किसी के हाथ लग जाये न
ये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
parul ji, aapke is post ki tippni ke liye mujhe shabd nahin mil pa rahe hain.manko chhu gai aapki ye rachna.
poonam
बर्क-ए-हिना गिराए जा...
ReplyDeleteबर्क-ए- हिना मतलब मेंहदी की खुशबु... इसे अपने लिखने के सन्दर्भ में लें मेरे कमेन्ट स्वरुप... आखिरी ख्याल अच्छा है.... कलम वाली.. सो उसकी बर्क-ए-हिना गिराए जा....
ReplyDeleteलगे हाथ जगजीत सिंह की ग़ज़ल भी सुन सकती हैं...
तुझको किसी से गरज क्या (कमबख्त पहली ही लाइन याद नहीं आ रही उनके किसी फैन से पूछिए )
मैंने जिस पारूल की फोटो देखी थी क्या यही पारूल है. लगता तो यही है क्योंकि पहली बार जब पारूल मेरे ब्लाग पर आई थी तब भी मुझे उसने सर ही कहा था.
ReplyDeleteबहरहाल पारूल तुम्हारी वो फोटो भी बहुत अच्छी थी और यह भी बहुत ही अच्छी है और हां तुम्हारी रचना भी बेहद खूबसूरत है.
घूम-घूमकर तुम्हारे ब्लाग को देख रहा हूं...
क्या खूबसूरत ढंग से सजाया है तुमने
तु्म्हारे ब्लाग को देखने के बाद मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जीवन के प्रति तुम्हारा सौंदर्यबोध बहुत ही उम्दा हैं.
तुम जहां भी रहोगी अपने आसपास को बेहद खुशनुमा बनाकर रखोगी...
पारूल... मैं तुम्हें- तुम्हें इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि तुम मुझसे उम्र में छोटी हो... बुरा नहीं मानने का... हमेशा खुश रहने का
अपना ख्याल रखना.
एक प्यारी सी लड़की की प्यारी कविता को पढ़कर अब मैं वापस जा रहा हूं
मैं उसके ख़त
ReplyDeleteअभी ही जला आया हूँ
मेरी ख़ामोशी को
हो सके तो और सुलगा देना !
अच्छा लगा ये ख्याल...
जल्दबाजी में गलती कर गया
ReplyDeleteबर्क - बिजली
हिना - मेंहदी
माफ़ी.
it was nice going thru ur blog...
ReplyDeletesundar rachnayen... sundar blog:)
very much thanks for your valuable comment with regards...
ReplyDeletekya karun pura post hi copy karoon kya....sach men beahtareen ....bas yun hi likhte rahiye ....
ReplyDeleteकिसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना
weel said parul ji
apki baat hi kuch aur hai
ReplyDeletehar line me dard hai
mere ashq ab rukte hi nhi
unhi likhte ranhe
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
बहुत खूब ,सुन्दर अभिव्यक्ति
किसी के हाथ लग जाये न
ReplyDeleteये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !
बहुत बढ़िया पारूल जी। पूरी कविता में सबसे सशक्त पक्ष कि कविता अपनी लाइन से एक इंच भी भटकती नहीं है और न ही पाठक को भटकने देती है तथा अपने को पढ़वाने की ताकत रखती है। फिर बधाई
बहुत खूब, बेहतरीन!
ReplyDeletebahut achhi rachna......ant pyara h.
ReplyDeletewahwa....behtreen abhivyakti....
ReplyDeletebahut khoob.
ReplyDeleteमैं अपनी हूक को
ReplyDeleteएक नज़्म में भर आया हूँ
कोई पूछे तो बस
चुपके से उसे सुना देना ..
बहुत ही कमाल की पंक्तियाँ है .... सच है दर्द भारी इक हुक ही तो नज़म बनती है ....
सुंदर अभिव्यक्ति..शब्द और भाव दोनों का बढ़िया संयोजन...पारूल जी बहुत बहुत बधाई..
ReplyDeletehar lafz sirf lafz nahi gahrai bhi hai
ReplyDeletenice mam
kuch logo ke hi blog padhta hoon
apko padh ke laga ki aap bhi mere gahre vicharon mein samil hogayi hai
your thinking is very deep
thank,s
most welcome my blog
हूक में भी अपनी तरह की एक दीवानगी होती है। कुछ करने की बेवजह चाह वजह बन जाती है। और मन का खंजर कलम का रूप अख्तियार कर लेता है। पैदा होनी ही थी एक नज़्म। एक रचना। ऐसे में खामोशी सुलगती ही है। शब्दों की आग में रोशन होकर निखरती ही है।
ReplyDeletepoori nazm achhi hai ...han poetic thoda aur jyada ho sakti thi in terms of flow ....
ReplyDeleteवो तन्हाई जिसका
सौदा करना है अभी बाकी
aur ye do misre udhar lunga kisi din .... shaandar hain ....
मैं अपनी हूक को
एक नज़्म में भर आया हूँ
sabse safe jagah hai ...hook bharne ke liey..rakhne ke liye.... sab nahik sun sakte ...sunne ke liye nazm pe dil ke kana rakhne padte hain ...
behad achhi rachna...
कितनी ही बातें एक ही कविता में कह दी हैं। लाजबाव।
ReplyDeleteमैं उसके ख़त
अभी ही जला आया हूँ
मेरी ख़ामोशी को
हो सके तो और सुलगा देना !
मैं खतों को कई साल पहले जला आया था। कमाल उन खतों की चुभन सालों बाद यादों औऱ डायरी के पन्नों से निकल कर मेरे ब्लॉग पर उतर आईं हैं।
रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
ReplyDeletePAARUL..
ReplyDeleteKYA KHOOB LIKHA HAI . NAZM KE SHABD DIL ME CHAP GAYE HAI . PADHKAR BAHUT DER SE TO CHUP HI HOON ...
SALAAM KABUL KARE..
VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
बहुत अच्छा लिखा है आपने. पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDelete