Monday, August 16, 2010

हूक!


वो बेवजह ही एक वजह होना
एक चाह......
न खुद में ही खुद का होना !
रोज आवाज देना
और कहना खुद से
रात होते ही ख़्वाबों को
बस सुला देना !
मैं अपनी हूक को
एक नज़्म में भर आया हूँ
कोई पूछे तो बस
चुपके से उसे सुना देना !
वो तन्हाई जिसका
सौदा करना है अभी बाकी
जिंदगी आये तो
उसका मौल बता देना !
मैं उसके ख़त
अभी ही जला आया हूँ
मेरी ख़ामोशी को
हो सके तो और सुलगा देना !
वो अनजाने ही बनता
फिर एक रेत का घर
एक कतरे में ही
उसको यूँ ही बहा देना !
किसी के हाथ लग जाये न
ये मन का खंजर
इस से बेहतर है कि
इसको 'कलम' बना देना !

66 comments:

  1. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !

    ye lines achhi lagi

    - Tarun

    ReplyDelete
  2. *********--,_
    ********['****'*********\*******`''|
    *********|*********,]
    **********`._******].
    ************|***************__/*******-'*********,'**********,'
    *******_/'**********\*********************,....__
    **|--''**************'-;__********|\*****_/******.,'
    ***\**********************`--.__,'_*'----*****,-'
    ***`\*****************************\`-'\__****,|
    ,--;_/*******HAPPY INDEPENDENCE*_/*****.|*,/
    \__************** DAY **********'|****_/**_/*
    **._/**_-,*************************_|***
    **\___/*_/************************,_/
    *******|**********************_/
    *******|********************,/
    *******\********************/
    ********|**************/.-'
    *********\***********_/
    **********|*********/
    ***********|********|
    ******.****|********|
    ******;*****\*******/
    ******'******|*****|
    *************\****_|
    **************\_,/

    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब..गहरी रचना!


    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  4. OOPS........!!
    mindblowing!

    ReplyDelete
  5. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !

    बेहतरीन रचना ...!!

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर रचना ............लाजवाब

    ReplyDelete
  7. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना .

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..

    ReplyDelete
  8. bahut badhiyaa parul ,agar apni shakti ko rachnatak aadhaar de diyaa jaaye to behatar

    ReplyDelete
  9. पारुल जी
    सच में कितनी गहराई में डुबो देती है आपकी रचनाये
    ****
    मैं अपनी हूक को
    एक नज़्म में भर आया हूँ.......
    *
    किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना...
    ****
    ....ये पंक्तियाँ तो दिल को छु गई

    ReplyDelete
  10. ye hook har man tak hai..
    bahut hi sundar!

    ReplyDelete
  11. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !

    ----------
    Parul ji aapki kalam khanjar se kum nahi...
    behatarin rachna!

    ReplyDelete
  12. सुन्दर अभिव्यक्ति,
    आभार...

    ReplyDelete
  13. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना ! wahhh bahut khoob.....abhiwyakti ko kya kalam se sawara hai!!!

    mujhe ye laenen bahut sundar lagi!!
    mere blog par bi padharen !!
    Jai HO Mangalmay Ho!!

    ReplyDelete
  14. Get your book published.. become an author..let the world know of your creativity. You can also get published your own blog book!

    www.hummingwords.in

    ReplyDelete
  15. Bahut hi badhiya...

    रात होते ही ख़्वाबों को
    बस सुला देना !

    मेरी ख़ामोशी को
    हो सके तो और सुलगा देना !

    किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !

    Bahut hi behtar.. bahut sundar..
    :)

    ReplyDelete
  16. मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  17. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना
    bahut sundar ,swantrata divas ki badhai .jai hind .

    ReplyDelete
  18. Hi..

    Man ki hook se ubhri rachna...
    padhkar hota hai abhaas..
    shabdon main bandhe ho jaise...
    man ke kuchh komal ahsaas..

    Sundar Rachna...

    Deepak...

    ReplyDelete
  19. ant ki panktiyaan to bahut hi zyada zabardast hai....bhool nahi sakoonga inko...

    "hook" ka arth nahi maloom..chhama kare

    ReplyDelete
  20. मेरे आजाद भारत को अब देखिए,
    हो रहे कत्ल हैं बेसबब देखिए,
    अब नई नस्ल को बेअदब देखिए,
    कैसे आ पायेगा मुल्क में अब अमन।
    उन शहीदों को मेरा नमन है नमन।।

    ReplyDelete
  21. हूक को भर कर सुन्दर नज़्म बना लेना हुनर का काम है ...!

    ReplyDelete
  22. very emotional poem, full of feelings! sorry that i donot come to ur blog regularly.. now i will...
    concluding lines of the poem are truly magnificent... किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !
    ...

    ReplyDelete
  23. ye hook dil ki hai ya kalam ki..jo bhi hai..hum mein bhi hook paida karti hai..fantastic job!

    ReplyDelete
  24. shbd hain ki......jadoo!
    awesome!



    @vartika

    ReplyDelete
  25. मैं उसके ख़त
    अभी ही जला आया हूँ
    मेरी ख़ामोशी को
    हो सके तो और सुलगा देना !

    इस ख़ामोशी ने बहुत सुलगाया है अंदर ही अंदर.. धुआं है आग कहीं नज़र नहीं आती.

    बहुत ही बढिया सम्प्रेषण. आनन्द ..

    आभार
    मनोज खत्री

    ReplyDelete
  26. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !

    विकल्प बहुत खूबसूरत है
    कविता बहुत खूबसूरत है

    ReplyDelete
  27. bahut sundar!
    visit also www.gaurtalab.blogspot.com

    ReplyDelete
  28. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !

    सुंदर रचना से रूबरू करने के लिए धन्यबाद.

    rachanaravindra.blogspot.com

    ReplyDelete
  29. एक सुंदर हूक!

    दिल को छू गई .

    ReplyDelete
  30. kaha se laati hain ye shabdon ki khoobsurti....???
    kuchh to gadbad hai...hummm

    ReplyDelete
  31. पारुल जी
    सच में कितनी गहराई में डुबो देती है आपकी रचनाये

    ReplyDelete
  32. सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी

    ReplyDelete
  33. करते है साक्षर ही अधिक भ्रूण हत्या ...............!
    plz vist parul ji...

    my own blog

    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    ReplyDelete
  34. पीड़ा शब्दों में उतरे, शस्त्रों में नहीं।

    ReplyDelete
  35. काफी देर से पड़ी आपकी कविता बहुत खुबसूरत नज़्म है ......एक सवाल है अगर आप इमानदारी से जवाब दें .....मेरी नज़र में एक पुरुष के लिए एक महिला के मन की व्यथा कह पाना बहुत मुश्किल होता है ....और मुझे लगता है की महिला के लिए भी एक पुरुष के अंतर्मन की व्यथा कह पाना उतना ही मुश्किल है .....अगर आपने वास्तव में ये काम किया है, तो मैं आपको सलाम करता हूँ ....
    आपकी रचनाये आगे भी पड़ता रहूँ, इसलिए आपको फॉलो कर रहा हूँ....

    कभी फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आइयेगा -


    http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
    http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
    http://khaleelzibran.blogspot.com/

    ReplyDelete
  36. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना

    KYA BAAT HAI...... BAHUT HI BHAVPURN

    POST.

    ReplyDelete
  37. वो अनजाने ही बनता
    फिर एक रेत का घर
    एक कतरे में ही
    उसको यूँ ही बहा देना !
    किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !
    parul ji, aapke is post ki tippni ke liye mujhe shabd nahin mil pa rahe hain.manko chhu gai aapki ye rachna.
    poonam

    ReplyDelete
  38. बर्क-ए-हिना गिराए जा...

    ReplyDelete
  39. बर्क-ए- हिना मतलब मेंहदी की खुशबु... इसे अपने लिखने के सन्दर्भ में लें मेरे कमेन्ट स्वरुप... आखिरी ख्याल अच्छा है.... कलम वाली.. सो उसकी बर्क-ए-हिना गिराए जा....

    लगे हाथ जगजीत सिंह की ग़ज़ल भी सुन सकती हैं...
    तुझको किसी से गरज क्या (कमबख्त पहली ही लाइन याद नहीं आ रही उनके किसी फैन से पूछिए )

    ReplyDelete
  40. मैंने जिस पारूल की फोटो देखी थी क्या यही पारूल है. लगता तो यही है क्योंकि पहली बार जब पारूल मेरे ब्लाग पर आई थी तब भी मुझे उसने सर ही कहा था.
    बहरहाल पारूल तुम्हारी वो फोटो भी बहुत अच्छी थी और यह भी बहुत ही अच्छी है और हां तुम्हारी रचना भी बेहद खूबसूरत है.
    घूम-घूमकर तुम्हारे ब्लाग को देख रहा हूं...
    क्या खूबसूरत ढंग से सजाया है तुमने
    तु्म्हारे ब्लाग को देखने के बाद मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जीवन के प्रति तुम्हारा सौंदर्यबोध बहुत ही उम्दा हैं.
    तुम जहां भी रहोगी अपने आसपास को बेहद खुशनुमा बनाकर रखोगी...
    पारूल... मैं तुम्हें- तुम्हें इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि तुम मुझसे उम्र में छोटी हो... बुरा नहीं मानने का... हमेशा खुश रहने का
    अपना ख्याल रखना.
    एक प्यारी सी लड़की की प्यारी कविता को पढ़कर अब मैं वापस जा रहा हूं

    ReplyDelete
  41. मैं उसके ख़त
    अभी ही जला आया हूँ
    मेरी ख़ामोशी को
    हो सके तो और सुलगा देना !

    अच्छा लगा ये ख्याल...

    ReplyDelete
  42. जल्दबाजी में गलती कर गया

    बर्क - बिजली
    हिना - मेंहदी

    माफ़ी.

    ReplyDelete
  43. it was nice going thru ur blog...
    sundar rachnayen... sundar blog:)

    ReplyDelete
  44. very much thanks for your valuable comment with regards...

    ReplyDelete
  45. kya karun pura post hi copy karoon kya....sach men beahtareen ....bas yun hi likhte rahiye ....

    ReplyDelete
  46. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना

    weel said parul ji

    ReplyDelete
  47. apki baat hi kuch aur hai
    har line me dard hai
    mere ashq ab rukte hi nhi
    unhi likhte ranhe

    ReplyDelete
  48. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !

    बहुत खूब ,सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  49. किसी के हाथ लग जाये न
    ये मन का खंजर
    इस से बेहतर है कि
    इसको 'कलम' बना देना !

    बहुत बढ़िया पारूल जी। पूरी कविता में सबसे सशक्त पक्ष कि कविता अपनी लाइन से एक इंच भी भटकती नहीं है और न ही पाठक को भटकने देती है तथा अपने को पढ़वाने की ताकत रखती है। फिर बधाई

    ReplyDelete
  50. bahut achhi rachna......ant pyara h.

    ReplyDelete
  51. मैं अपनी हूक को
    एक नज़्म में भर आया हूँ
    कोई पूछे तो बस
    चुपके से उसे सुना देना ..

    बहुत ही कमाल की पंक्तियाँ है .... सच है दर्द भारी इक हुक ही तो नज़म बनती है ....

    ReplyDelete
  52. सुंदर अभिव्यक्ति..शब्द और भाव दोनों का बढ़िया संयोजन...पारूल जी बहुत बहुत बधाई..

    ReplyDelete
  53. har lafz sirf lafz nahi gahrai bhi hai
    nice mam
    kuch logo ke hi blog padhta hoon
    apko padh ke laga ki aap bhi mere gahre vicharon mein samil hogayi hai
    your thinking is very deep
    thank,s
    most welcome my blog

    ReplyDelete
  54. हूक में भी अपनी तरह की एक दीवानगी होती है। कुछ करने की बेवजह चाह वजह बन जाती है। और मन का खंजर कलम का रूप अख्तियार कर लेता है। पैदा होनी ही थी एक नज़्म। एक रचना। ऐसे में खामोशी सुलगती ही है। शब्दों की आग में रोशन होकर निखरती ही है।

    ReplyDelete
  55. poori nazm achhi hai ...han poetic thoda aur jyada ho sakti thi in terms of flow ....

    वो तन्हाई जिसका
    सौदा करना है अभी बाकी

    aur ye do misre udhar lunga kisi din .... shaandar hain ....


    मैं अपनी हूक को
    एक नज़्म में भर आया हूँ

    sabse safe jagah hai ...hook bharne ke liey..rakhne ke liye.... sab nahik sun sakte ...sunne ke liye nazm pe dil ke kana rakhne padte hain ...

    behad achhi rachna...

    ReplyDelete
  56. कितनी ही बातें एक ही कविता में कह दी हैं। लाजबाव।

    मैं उसके ख़त
    अभी ही जला आया हूँ
    मेरी ख़ामोशी को
    हो सके तो और सुलगा देना !

    मैं खतों को कई साल पहले जला आया था। कमाल उन खतों की चुभन सालों बाद यादों औऱ डायरी के पन्नों से निकल कर मेरे ब्लॉग पर उतर आईं हैं।

    ReplyDelete
  57. रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  58. PAARUL..

    KYA KHOOB LIKHA HAI . NAZM KE SHABD DIL ME CHAP GAYE HAI . PADHKAR BAHUT DER SE TO CHUP HI HOON ...

    SALAAM KABUL KARE..

    VIJAY
    आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

    ReplyDelete
  59. बहुत अच्छा लिखा है आपने. पढ़कर अच्छा लगा

    ReplyDelete