Saturday, September 26, 2009

सुन.!


तू, इस बेचैन दिल की कहानी को सुन
प्यासी आंखों को तरसते से पानी को सुन !
गम के खाते में और क्या बाकी लिखूं ?
इस ज़माने को तो बस मैं साकी लिखूं
भरते जो जा रहे है पैमाने कईं
तू, उन आसूँओं की रवानी तो सुन !
घूँट घूँट भर भर के कब तक इनको पियूं
ख़ुद को इस तरह से मैं कैसे जियूं?
खाली लौटा हूँ, उसने भी रुसवा किया
तू उस जिंदगी की बेईमानी तो सुन !
दो कदम भी न ख़ुद के लिए मैं चला
रुक गया हूँ क्यों, जिंदगी पर भला ?
बहुत मुश्किल में हूँ,सिमटा सा दिल में हूँ
तू, इस बेपरवाह की मनमानी तो सुन!

11 comments:

  1. सच...बहुत तंग करते हैं बेपरवाह दिल...

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  2. बहुत बढ़िया रचना.

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  3. पारूल जी
    बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने
    घूँट घूँट भर भर के कब तक इनको पियूं
    ख़ुद को इस तरह से मैं कैसे जियूं?
    खाली लौटा हूँ, उसने भी रुसवा किया
    तू उस जिंदगी की बेईमानी तो सुन
    - विजय

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  4. भीगे भावों से सनी रचना है |

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  5. खाली लौटा हूँ, उसने भी रुसवा किया
    तू उस जिंदगी की बेईमानी तो सुन
    बेहतरीन रचना

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  6. बेहतरीन नज़्म के लिए मुबारकवाद!

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  7. अच्छी रचना लिखी है आपने
    वाह !!

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  8. दिल ऐसाही होता है जिसे किसी की परवाह नही होती है .....बढिया!

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  9. बहुत मुश्किल में हूँ,सिमटा सा दिल में हूँ
    तू, इस बेपरवाह की मनमानी तो सुन!

    वाह सुन्दर....अत्यंत प्रभावी ...

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