Friday, August 21, 2009

सोच!


तू जिंदगी की कड़वाहट को
होठों पे रखता है क्यों?
कि हर बार बस आँसू को
ही चखता है क्यों?
घोल आया है कहाँ
ख्वाहिशों सी मिश्री ?
दिल के मीठेपन को
इस कदर तरसता है क्यों?
डूबने को है तेरी आंखों में ही
कोई शाम सुहानी ।
है कोई उम्मीद पनपने को
जैसे सुबह रूहानी ।
ये बता दे कब तक छाए रहेगें
गम के बादल ।
फलक ,हालत पर तेरे
आख़िर बरसता है क्यों?
यूं कब तलक तन्हाई को
लगाके गले ।
तेरा होना आख़िर
ख़ुद तुझी को खले ।
वहां किसी ख्वाब को
मुस्कुरा के तो देख ।
जहाँ बस जिन्दगी की
आह पले ।
मैं अब तक सोच में हूँ
तू भी सोच के देख ।
तेरा साया,तुझ पर ही
हँसता है क्यों?
तू चला जाए बिन कहे
और खामोशी न रोये ।
ये बेजुबां से तेरे अल्फाज़
न मासूमियत खोये ।
इसी डर से हर सवाल
दोहराता हूँ मैं
मगर तू जवाब से पहले ही
थकता है क्यों?

11 comments:

  1. गहरे भावों वाली रचना।आभार।

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  2. जीवन को जिस सकरात्मक पहलु से आप ने देखा है , और कविता के माध्यम से जीवन को सकरात्मक तरीके से जीने कि शिच्छा आप कि कविता देती हैमै तो बस यहीकहूंगा
    जीवन को सच से जीने में ही जलवा है ..
    कड़वाहट है कल्पनाओं में छलवा ही छलवा है ,,
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  3. bahut hi sundar dang se baat kahane ki koshish ki hai our sakchham bhi hui hai......behtar bhawabhiwyakti

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  4. बेहतरीन रचना
    मगर तू जवाब से पहले ही
    थकता है क्यों?
    सार्थक प्रश्न

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  5. अच्छी रचना... आभार

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  6. बहुत कुछ कह गयी आपकी रचना...भाव भी बहुत गहरे हैं...हो सकता है सारे अर्थ हमें उस तरह समझ ना आयें...लेकिन इतना जानते हैं कि रचना बहुत बेहतरीन है

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  7. आपकी रचना की सादगी मन में देर तक बनी रहती है।
    ---
    मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव

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  8. भाव-प्रणव सुन्दर रचना के लिए बधाई।

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  9. NIMIT MATRA HUN LEKHAN ME FIR SHABD KAHAAN SE LAUN ISPE TPPANI KARNE KE LIYE....


    ARSH

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