When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Friday, August 21, 2009
सोच!
तू जिंदगी की कड़वाहट को
होठों पे रखता है क्यों?
कि हर बार बस आँसू को
ही चखता है क्यों?
घोल आया है कहाँ
ख्वाहिशों सी मिश्री ?
दिल के मीठेपन को
इस कदर तरसता है क्यों?
डूबने को है तेरी आंखों में ही
कोई शाम सुहानी ।
है कोई उम्मीद पनपने को
जैसे सुबह रूहानी ।
ये बता दे कब तक छाए रहेगें
गम के बादल ।
फलक ,हालत पर तेरे
आख़िर बरसता है क्यों?
यूं कब तलक तन्हाई को
लगाके गले ।
तेरा होना आख़िर
ख़ुद तुझी को खले ।
वहां किसी ख्वाब को
मुस्कुरा के तो देख ।
जहाँ बस जिन्दगी की
आह पले ।
मैं अब तक सोच में हूँ
तू भी सोच के देख ।
तेरा साया,तुझ पर ही
हँसता है क्यों?
तू चला जाए बिन कहे
और खामोशी न रोये ।
ये बेजुबां से तेरे अल्फाज़
न मासूमियत खोये ।
इसी डर से हर सवाल
दोहराता हूँ मैं
मगर तू जवाब से पहले ही
थकता है क्यों?
गहरे भावों वाली रचना।आभार।
ReplyDeleteजीवन को जिस सकरात्मक पहलु से आप ने देखा है , और कविता के माध्यम से जीवन को सकरात्मक तरीके से जीने कि शिच्छा आप कि कविता देती हैमै तो बस यहीकहूंगा
ReplyDeleteजीवन को सच से जीने में ही जलवा है ..
कड़वाहट है कल्पनाओं में छलवा ही छलवा है ,,
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
bahut hi sundar dang se baat kahane ki koshish ki hai our sakchham bhi hui hai......behtar bhawabhiwyakti
ReplyDeleteGahre bhaavon ki sartthak abhivyakti.
ReplyDeleteThink Scientific Act Scientific
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteमगर तू जवाब से पहले ही
थकता है क्यों?
सार्थक प्रश्न
अच्छी रचना... आभार
ReplyDeleteबहुत कुछ कह गयी आपकी रचना...भाव भी बहुत गहरे हैं...हो सकता है सारे अर्थ हमें उस तरह समझ ना आयें...लेकिन इतना जानते हैं कि रचना बहुत बेहतरीन है
ReplyDeleteआपकी रचना की सादगी मन में देर तक बनी रहती है।
ReplyDelete---
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
भाव-प्रणव सुन्दर रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteNIMIT MATRA HUN LEKHAN ME FIR SHABD KAHAAN SE LAUN ISPE TPPANI KARNE KE LIYE....
ReplyDeleteARSH
saarthak soch.
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।