Thursday, February 12, 2009

शायद...


मैं तेरी सोच में था,जब दर्द की बात चली
मुद्दतों बाद थी मेरी जिंदगी मेरे साथ चली
मैं चाहकर भी तेरा होंसला न बन पाया
जहाँ कल तक था मैं,उस मन में खालीपन पाया
देर तक मैं रहा खड़ा और फिर मायूस सा चल पड़ा
ख़ुद की अपनी तन्हाई से फिर लम्बी मुलाकात चली ॥
न ख़ुद की थी ख़बर और न था तेरा पता
मैं कर चला था अनजाने में जिंदगी से भी खता
आँखें बंद करके जब पूछा अपने दिल से कि तू ही बता
तो जैसे मुझे लेकर अधूरे ख़्वाबों की एक लम्बी रात चली ॥
तेरी आंखों से बहा एक आंसूं भी न मिला
फिर कर रहा है कौन मेरा मन गीला
रह गई है जिंदगी जैसे एक आह बनकर ॥
भर गया है सहराँ,शायद देर तक है बरसात चली ॥

6 comments:

  1. बहुत खूब लिखा है।

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  2. तेरी आंखों से बहा एक आंसूं भी न मिला
    फिर कर रहा है कौन मेरा मन गीला
    रह गई है जिंदगी जैसे एक आह बनकर ॥
    भर गया है सहराँ,शायद देर तक है बरसात चली ॥ waah bahut bahut sundar

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  3. Parul ji,
    bahut sundar evam abhivyaktipoorn rachna ..badhai.
    Poonam

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