Friday, January 23, 2009

काश..


मेरी इस बेरुखी में शामिल गर न तू होता
मुझे इस दर्द में भी शायद थोड़ा सुकूं होता !!
न अनजान होता तू इतना मुझसे
गर तू ख़ुद से भी कभी रु-ब-रु होता!!
न होती तेरी मेरी जिंदगी किश्तों में
न घुलती तन्हाई इस कदर रिश्तों में
तो प्यार तेरा मेरा न यूं बे-आबरू होता!!
रास आ जाती मुझको या तो तेरी बेवफाई
या कि मेरी अपनी होती,मेरी तन्हाई
न उसमें तेरे लिए एक भी आंसूं होता!!
नज़र आती है आईने में तेरी सूरत
क्यों मेरे वजूद को पड़ी तेरी ही जरुरत
काश ये अक्स मेरा,तुझ सा न हु-ब-हु होता !!
ये मेरा गम है,जो तेरे लिए बेनाम सा है
ये दर्द भले ही तेरे लिए आम सा है
काश ये मुझ पर खत्म और तुझ से शुरू होता !!

11 comments:

  1. ये मेरा गम है,जो तेरे लिए बेनाम सा है
    ये दर्द भले ही तेरे लिए आम सा है
    काश ये मुझ पर खत्म और तुझ से शुरू होता !!
    .........भावनाओं के ज्वार को सांचे में
    करीने से सजाया है,बहुत बढिया...........

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  2. sach bhawnao ko sundar tarike se piroya hai,behad khubsurat.badhai.

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  3. मेरी इस बेरुखी में शामिल गर न तू होता
    मुझे इस दर्द में भी शायद थोड़ा सुकूं होता !!
    न अनजान होता तू इतना मुझसे
    गर तू ख़ुद से भी कभी रु-ब-रु होता!!

    वाह जी वाह बेहतरीन

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  4. BAHOT BADHIYA LIKHA HAI AAPNE PAHALI DO PANKTIYON NE HI TO KAHAR BARPA DIYA HAI ,THODI SE RACHNA KO FER BADAL KAR KE PURI MUKAMMAL GAZAL BANAI JA SAKTI HAI ... BAHOT KHUB LIKHA HAI AAPNE... DHERO BADHAI AAPKO ....


    ARSH

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  5. स्वागत है.अच्छी अभिव्यक्ति के लिये
    .


    द्विजेन्द्र द्विज

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  6. बेहतरीन रचना..बधाई.

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  7. आपकी रचना ... आपके प्रस्तुतीकरण की जितनी भी तारीफ़ करूँ कम है .....


    अनिल कान्त
    मेरा अपना जहान

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  8. ये दर्द भले ही तेरे लिए आम सा है
    काश ये मुझ पर खत्म और तुझ से शुरू होता !!
    बहुत ही बढ़िया

    www.merichopal.blogspot.com

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