Friday, December 19, 2008

सोच ..!!


सही कहा तुमने
धीरे धीरे मन की सारी परतें खुल रही है !!
और दिल की कलम
जिंदगी के कोरे कागज पे चल रही है !!
चला जा रहा हू मैं उस सोच की तरफ़
जहाँ लफ्जों की हस्ती ख़ुद ब ख़ुद बदल रही है !!
तन्हाई बुन रही है कुछ,वहीं मन के कोने में
देर है अभी मुझे वहां ख़ुद होने में
हाँ मगर यकीं है,हर बात मेरी ही
रोशन करके सोच को,बन शमा जल रही है !!
सुन रहा हू मैं भी बैठा,रात की अंगडाइयां
गूंजती है कहीं ख़्वाबों की शहनाईयॉ
जिस सुबह के लिए मैं भी बेचैन था
देखकर मुझको एकाएक आँखें क्यों वो मल रही है !!
मेरी ही आरजू बनकर मुझसे अजनबी
जाने क्या क्या कर जाती है कभी
गीली गीली सी मेरे मन की मिट्टी
धीरे धीरे फिर किसी नज़्म के सांचे में ढल रही है !!

7 comments:

  1. वाह जी पारूल जी बहुत ही सुंदर कविता

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  2. बडी सुन्दर कविता हाथ लगी है :)

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  3. बहुत सुंदर लिखा है आपने

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  4. तन्हाई बुन रही है कुछ,वहीं मन के कोने में
    देर है अभी मुझे वहां ख़ुद होने में..sundar bhaav...

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  5. so many thanx to all of u for ur valuable comments...

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  6. गीली गीली सी मेरे मन की मिट्टी
    धीरे धीरे फिर किसी नज़्म के सांचे में ढल रही है !!

    kya baat hai ...
    parul ji word verification hata den to
    comments dene me pareshani se baha ja sakta hai

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