When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Friday, December 19, 2008
सोच ..!!
सही कहा तुमने
धीरे धीरे मन की सारी परतें खुल रही है !!
और दिल की कलम
जिंदगी के कोरे कागज पे चल रही है !!
चला जा रहा हू मैं उस सोच की तरफ़
जहाँ लफ्जों की हस्ती ख़ुद ब ख़ुद बदल रही है !!
तन्हाई बुन रही है कुछ,वहीं मन के कोने में
देर है अभी मुझे वहां ख़ुद होने में
हाँ मगर यकीं है,हर बात मेरी ही
रोशन करके सोच को,बन शमा जल रही है !!
सुन रहा हू मैं भी बैठा,रात की अंगडाइयां
गूंजती है कहीं ख़्वाबों की शहनाईयॉ
जिस सुबह के लिए मैं भी बेचैन था
देखकर मुझको एकाएक आँखें क्यों वो मल रही है !!
मेरी ही आरजू बनकर मुझसे अजनबी
जाने क्या क्या कर जाती है कभी
गीली गीली सी मेरे मन की मिट्टी
धीरे धीरे फिर किसी नज़्म के सांचे में ढल रही है !!
Waah ! sundar abhivyakti
ReplyDeleteवाह जी पारूल जी बहुत ही सुंदर कविता
ReplyDeleteबडी सुन्दर कविता हाथ लगी है :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है आपने
ReplyDeleteतन्हाई बुन रही है कुछ,वहीं मन के कोने में
ReplyDeleteदेर है अभी मुझे वहां ख़ुद होने में..sundar bhaav...
so many thanx to all of u for ur valuable comments...
ReplyDeleteगीली गीली सी मेरे मन की मिट्टी
ReplyDeleteधीरे धीरे फिर किसी नज़्म के सांचे में ढल रही है !!
kya baat hai ...
parul ji word verification hata den to
comments dene me pareshani se baha ja sakta hai