Thursday, December 18, 2008

चुभन ..!!


सड़क पर बिछाकर सपने
बैठी हू लेकर संग अपने
कि शायद कोई खरीदार आए
दर्द के बाजार आए !!
गुजर कर ख्वाहिशों की हद से
तन्हा हो गई न जाने कब से
कि डरने लगे है देखकर
मुझे मेरे अजनबी से साए !!
बिछडा है जो आशियाना
न मंजिल मिली,न फिर ठिकाना
अब तो ये यकीं भी नही मुझे
कि बैठा होगा दहलीज़ पे कोई उम्मीद बिछाये !!
न जुदा हुई बस ख़्वाबों के घर से
गिर गई जिंदगी की नज़र से
हर आह दिल में गूंजती रह गई
ख़ुद की तलाश में तरसी है राहें !!
हर आंसूं ख़ुद में इतना कम है
कि बेगाने से मुझसे मेरे गम है
जब भी रोने को दिल करे
हर कतरा जैसे मुस्कुराये !!

1 comment:

  1. nice poem .. esp
    गुजर कर ख्वाहिशों की हद से
    तन्हा हो गई न जाने कब से

    dangerous to carry such thoughts :)
    hope u keep them only at poem's mood :)

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