Wednesday, November 19, 2008

"शब्दहीन"


तुम्हे इस जिंदगी का गीत कहूं
या अपने प्यार से महकी सी कविता कहूं
चाहत के रंगों से भरी ग़ज़ल कहूं
या जिंदगी से जिंदगी का सिलसिला कहूं
रोज लफ्जों से कशमकश
हर लम्हा देता है मुझे पे हंस
और कहता है कि मैं तुम्हे
वक्त का सबसे दिलकश लम्हा कहूं
जब कभी, मुझसे मिलती है तन्हाई
ये कहकर मांगती है रिहाई
छोड़ दो अब मुझे,वजूद मिल गया तुझे
तो क्या मैं तुम्हे, ख़ुद का होना कहूं
हाँ! यही है जवाब
तो फिर क्यूँ उलझी हू मैं इस सवाल में
मैं रखना चाहती हू तुम्हे,हर शब्द से परे
और सोचना नही चाहती कि क्या कहूं..
:) :) :) :) :)

1 comment:

  1. kuch kaho na
    sabd chotey,
    sochta
    hum "kyan" hotey,
    phir na sabd,
    sabdheen hotey....

    hehehehhe.. thank you very much!

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