जब कभी लम्हे यादों में बहा करते है
तब हम ख़ुद से बस ये कहा करते है!
आज फिर बीती हुई घड़ी जी आया
कुछ पल आज के बीते पलों में सी आया
मुस्कुराया भी और रोया भी था वहां
देख आया भी अब वो हसरतें है कहाँ
जिन्हें पल पल तब हम सजोया करते थे
पूरे होंगे ये खवाब सोच खुश होया करते थे
पर आज जब इनको इस तरह देखा करते है
तो यूं लगता है कहाँ ये दिल से वफ़ा करते है!
वहां पड़े थे ख़ुद को लिखे बिखरे से ख़त
और लगे थे वक्त के पहरे भी सख्त
वहां न जाने कितने सारे गम थे
मुझे देख के सब के सब नम थे
फिर भी लगा की वक्त से इनके रिश्ते कितने गहरे है
और इनकी फिक्र हम बेवजह ही किया करते है!
आज उलझनों की गिरफ्त में है मन का परिंदा
फिर भी अब तलक एक लम्हा मुझ में अब भी है जिन्दा
उस लम्हे में जिंदगी अब भी इंतज़ार में है
वो शायद अब भी उस वक्त के प्यार में है
आख़िर क्यों इस मोहब्बत की सजा हम ख़ुद को दिया करते है
जिंदगी छोड़कर वक्त को जिया करते है ..
you are such a good writer..you gazal are superb....now i am follower of your blog.....
ReplyDeleteयुवा जोश !
thanx arvind..
ReplyDeleteपारुलजी !
ReplyDeleteआपकी लेखनी मे दर्द है जो मुख्यत व्यक्ति को भावनाओ मे बहाने मे सक्षम ह
उस लम्हे में जिंदगी अब भी इंतज़ार में है.
शायद अब भी उस वक्त के प्यार में है.
"आख़िर क्यों इस मोहब्बत की सजा हम ख़ुद को दिया करते है.
जिंदगी छोड़कर वक्त को जिया करते है".
वाह! क्या अभिव्यक्ति है।
हार्दिक मगल कामना।
आप मेरे ब्लोग पर आमन्त्रित है।
आपका
महावीर बी सेमलानी "भारती"
Parulji,
ReplyDeleteMajbooree padhi.Pahle laga nirashavadee rachana ha par bad men ummeeden bhee dtkhin.Achchi gazal ha.Ap nai kavitaen bhee achchee likh saktee han.Badhai.
Hemant Kumar
bahut khoob parul, keep it up :)
ReplyDeleteMohabbat ur zindgi ka saath kaphi purana hai...mohabbat ka maza lijiye aur zindagi jite rahiye...
ReplyDeletethanx 2 all of u...!!!
ReplyDeleteउदास कविता !
ReplyDeleteachha laga..bhawnao ko aapne jis tarah net ke panno par ukera hai ..wakai ye kabiletarif hain...likhte rahiye...
ReplyDeleteAap ki "Mazboori" Padhi..Aap ki apne jazbaton ko ghazal ke rang me bahr dena ka andaz kaabile tareef hai..Likhte rahe..
ReplyDeletethanx to all of u ....
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