When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Monday, September 20, 2010
ख्वाहिश..!
अपनी ख़ामोशी में भर लूं
तुम्हारी हिचकी
या कि तुम्हारे मन का
हर ज़ख्म चुरा लूं ।
वो जो चुभते हैं
होले-होले
यूँ भी कई रंग घोले
उन आंसूओं को ही
हरदम चुरा लूं ।
कब तक रहूँगा ऐसे
और तुमसे कहूँगा कैसे
क्यों न बिन कहे ही
तुम्हारे उतारे हुए
वो तन्हा से मौसम चुरा लूं ।
मैं पूछता फिरता हूँ
जहाँ भर में
तुम्हारे लफ़्ज़ों का ठिकाना
मौका मिले तो फिर
कोई तुम सी नज़्म चुरा लूं ।
वो अल्हड सी हसरत
जो अक्सर गोल हो जाती है
मिल जाये उसकी मिटटी
तो गीली सी हर कसम चुरा लूं ।
आती नहीं क्यों तुमको
नीली नींद की फिर एक सुबकी
इस फिराक में कि तुम सोओं
और मैं तुम्हारी जिन्द सी कलम चुरा लूं ।
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71 comments:
maine jab bhi gulzaar sahab ko padha hai..man mein aisa hi kuch reha hai..ye nazm unhi ko dedicate karti hoon :)
ek sundar abhivyakti...badhiya najm..
superbbbbbbbb!
आजकल मैं बहुत चूज़ी हो गया हूँ... सच्ची! बहुत ही चूज़ी... अब मुझे हर चीज़ बेस्ट ही चाहिए होती है... और मैं बेस्टेस्ट की ही तलाश करता हूँ... बिलो स्टैण्डर्ड से नफरत सी हो गई है.... इसी तरह मुझे ब्लॉग्गिंग में भी हो गया है... मैं अब बेस्टेस्ट पोस्ट्स ही पढ़ता हूँ... और उन पर कमेन्ट करता हूँ.... और रिदम ऑफ़ वर्ड्स उनमें से एक बेस्टेस्ट ब्लॉग है... और इसको बेस्टेस्ट बनाने वाला तो जेम (GEM) है .....कविता या लेखनी वही होनी चाहिए जो आपके दिल में उतर जाये... यू आर ग्रेट... विद इन्नेट फ्लो ऑफ़ वर्ड्स ... बेगेटिंग... फ्रॉम दा कोर ऑफ़ हार्ट....
रिगार्ड्स...
wow parul behad khoobsurat
दिल छूने वाली नज़्म लिखी है ,क्यों ना इसकी छुअन चुरा लूं
:-)
Parul,
Nice one :) But I am not clear on one part:-
You wrote it as dedication to Guljarji - correct?
For a moment, I though Guljarji wrote....
wow !
shaandaar aur jaandaan.....
हमे भी आपका लिखा पढ़ कर वादी-ए-गुलज़ार का अहसास होता है, इसी तरह अरमानों के खज़ाने से सोच चुराते रहिये ... वो गाना है न .. चोरी में भी है मज़ा ... !
आती नहीं क्यों तुमको
नीली नींद की फिर एक सुबकी
इस फिराक में कि तुम सोओं
और मैं तुम्हारी जिन्द सी कलम चुरा लूं
बहुत सुन्दर ...कोमल से एहसास
पारुल जी,
हमेशा की तरह एक बार फिर एक खुसुरत नज़्म.........आपने ये गुलज़ार साहब को समर्पित की ....बहुत अच्छा लगा .........गुलज़ार साहब इस दौर के एक बेहतरीन शायर हैं |
आपको पड़कर ऐसा लगता है जैसे आप लफ्जों की नाव में बिठाकर कही दूर ख्वाबो में ले जाती हैं|
ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं-
"कब तक रहूँगा ऐसे
और तुमसे कहूँगा कैसे
क्यों न बिन कहे ही
तुम्हारे उतारे हुए
वो तन्हा से मौसम चुरा लूं ।
मैं पूछता फिरता हूँ
जहाँ भर में
तुम्हारे लफ़्ज़ों का ठिकाना
मौका मिले तो फिर
कोई तुम सी नज़्म चुरा लूं ।"
बहुत खूबसूरत नज़्म है. अपने बज़ पर इसे शेयर कर दूँ?
बहुत अच्छा लिखा.. बिलकुल गुलज़ार साहब के तेरे उतारे हुए दिन की तरह..
bharat ke bahut bade fankar hai gulzar sahab....achha laga aapka unke liye samman!!! kosshish rahegi m bhi kuch achha likh saku.. !!
जय हो मंगलमय हो
jarur mukti... :)
bahut khoob likha hai aapne...parul ji...n thanks for ur comment also..
sundar
ultimate
vartika!
main bhi kya na chura loon tumhara :)
हां तो पारूल ने एक बार साबित कर दिया कि वह सबकी चहेती क्यों है.
पारूल को सब इसलिए भी पसन्द करते हैं क्योंकि पारूल सबसे जुदा लिखती है.
पारूल तुम्हारी पहली किताब जब भी आएं मुझे जरूर बताना.... लाइन लगाकर आटोग्राफ लेने वालों में सबसे पहली पंक्ति में मैं ही खड़ा रहूंगा.
वेलडन
बहुत खूबसूरत रचना ।
I DONT READ A LOT OF POETRY AND ASSOCIATED KIND OF THINGS, BUT THIS TIME ITS SO SIMPLE AND THE FLOW IS SO NATURAL, I COMPLETED IT.. A VERY DEEP & EMOTIONAL WRITING.
BEST
MANOJ KHATRI
behad khubsurat, har pankti...
Gulzaar ji agar ye nazm padenge to naa jane kitnee nazme tumharee ise nazm par nyochawar ho saktee hai.......
Ye atishayokti nahee hai......
सच्ची अद्भुत ख्वाहिश और नज्म भी।
पारुल जी,
क्यों मजाक करती हैं......उर्दू के मामले में हम आपके सामने कहा ठहरते हैं .......काश मैं भी आपकी जैसी नज्मे लिख पाता|
बहुत सुन्दर।
वाह क्या ख्वाहिश है………………बहुत ही खूब्।
आती नहीं क्यों तुमको
नीली नींद की फिर एक सुबकी
इस फिराक में कि तुम सोओं
और मैं तुम्हारी जिन्द सी कलम चुरा लूं ...
कुछ अन्छुवे बिंब और अंजानी चाहत और नाज़ुक भावनाएँ सॅंजो कर लिखा है इस रचना को .... प्यार का एहसास होता ही ऐसा है ... कुछ भी करने को मन करता है ... बहुत खूबसूरत नज़्म ...
bahut badhiya hai parul ji .... gulzar saab to bas ... aap ki khwahishen jaldi poori honi chahiye ...
क्या कहूँ आपको और क्या कहूँ आपकी तारीफ में, शब्द हिचकिचा रहे हैं,
हर एक शब्द दिल तक उतार गया.
बहुत ही खूबसूरत ......
एक बेहतरीन रचना----हृदयस्पर्शी।
बेहतरीन--।
bahut khoobsoorat..
bahut sunder
Well ..Parul ji....Great work again. Great NAZM....and it's really fantastic to go through your blog because every piece of writing is just too good to miss.
Congratulations...... Parul ji...
bahut sundar paarulji
दिल को छू गई....
वाह ! वाह!
bahut hi badiya....
बहुत ही सुन्दर शब्द चयन ..अच्छी प्रस्तुति
behtareen rachana aapko apni rachnayen print media me bhi dena chahiye
rad! what an expression! loved it!
neeli neend ki subki! I'm dumbfounded!
कमाल का तसव्वुर ,अद्भुत प्रस्तुतीकरण ,
बहुत बहुत मुबारक !
बहुत सुन्दर नज़्म लिखी है पारुल जी|
गजब पारुल जी गजब.....शब्दों का मेल। जल्दी ही गुलजार तक पहुंचने वाली है।
very touchy, sundar
अपनी ख़ामोशी में भर लूं
तुम्हारी हिचकी
तुम्हारे मन का
हर ज़ख्म चुरा लूं ।
वो जो चुभते हैं
होले-होले
तुम्हारे उतारे हुए
वो तन्हा से मौसम चुरा लूं ।
आती नहीं क्यों तुमको
नीली नींद की फिर एक सुबकी
इस फिराक में कि तुम सोओं
और मैं तुम्हारी जिन्द सी कलम चुरा लूं ।
behad asardar khwab bune hain aapne..har harf par bosa karne ka jee chata ha..
aapki teep par apna khyal apne blog mein diya hai..ek bar phir qadam rakhein--
पारुल आज दिल खुश हो गया ...
बहुत ही खूबसूरत नज़्म उतरी है ......!!
is post par apna comment na dekhkar aashcharya hua.....
bahut hi behtareen rachna...
sabe aakhiri pankti sabse shaandaar..
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मेरे ब्लॉग पर इस बार थोडा सा बरगद..
इसकी छाँव में आप भी पधारें....
बहुत सुन्दर..............
यहाँ तो कोई हेराफेरी नहीं, पूरी की पूरी सीनाजोरी है,,,,,,,,,,,,
चोरी की इससे बढ़िया इच्छा एवं स्वीकारोक्ति और क्या होगी........................
माननीय गुलज़ार जी को समर्पित यह रचना दिल को छू गयी..........
गर्दिक शुभकामनाएं..........
चन्द्र मोहन गुप्त
यहाँ तो कोई हेराफेरी नहीं, पूरी की पूरी सीनाजोरी है,,,,,,,,,,,,
चोरी की इससे बढ़िया इच्छा एवं स्वीकारोक्ति और क्या होगी........................
माननीय गुलज़ार जी को समर्पित यह रचना दिल को छू गयी..........
गर्दिक शुभकामनाएं..........
चन्द्र मोहन गुप्त
हमेशा की तरह एक निर्मल और सुंदर अभिव्यक्ति.
क्यों न बिन कहे ही
तुम्हारे उतारे हुए
वो तन्हा से मौसम चुरा लूं ।
मैं पूछता फिरता हूँ
जहाँ भर में
तुम्हारे लफ़्ज़ों का ठिकाना
मौका मिले तो फिर
कोई तुम सी नज़्म चुरा लूं ।
parul g!!
nowords to utter.
very nicely nitted dreams in poetry.
congra. billions..
very nice poem........keep it up
rachna khubsurat hai
badhai
बहुत सुन्दर रचना ... कहीं दिल में एक ठंडी आह सी भर जाति है ...
बहुत सुन्दर !
gulzar saab ka koi jawab nahi.....achhi prastuti....sadhuwad...
बहुत सुंदर रचना शुभकामनायें a
very nice expressions,thanks for coming to my blog.
बहुत बढ़िया !
इतना की आपके ब्लॉग को मैंने खुद के ब्लॉग से जोर दिया है .
......aaj ek baar fir aapke blog pe aana huwa,achcha huwa vrna ek khubsurat najm se vanchit ho raha tha,
बहुत खूबसूरत रचना ।
बहुत सुन्दर .........
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं ,
Bahut sunder . Guljar sahab ka touchhai isme.
अपनी ख़ामोशी में भर लूं
तुम्हारी हिचकी
या कि तुम्हारे मन का
हर ज़ख्म चुरा लूं ।
वो जो चुभते हैं
होले-होले
यूँ भी कई रंग घोले
उन आंसूओं को ही
हरदम चुरा लूं ।
नि:शब्द !
अभिभूत हो उठी.
pyaari nazm kahi hai paarul..baar baar padhne ko jee karta hai, nice metaphors.. :)
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