When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Tuesday, June 30, 2009
गुजारिश..
दिन बेचैन सा था,रात जागी सी थी
नींद आंखों से बहुत दूर भागी सी थी
किसी अजनबी सी ख्वाहिश को लिए,फलक के तले
मैं कोशिश में थी,जिंदगी की कोई बात चले॥
मैं फुर्सत में थी,ख़ुद से रु-ब-रु सी थी
ख़ुद से गुफ्तगू की पूरी जुस्तजू सी थी
बस एक भय लिए चली जा रही थी
कि कहीं ऐसा न हो,वहां मुझे कुछ न मिले॥
मुक्त होना चाहती थी,हर बंधन से
मिलना चाहती थी खुलकर जीवन से
जोड़ना चाहती थी ख़ुद से नया रिश्ता
छोड़ना चाहती थी सारे शिकवे-गिले॥
चाहती थी जिंदगी से नए सिलसिले
बुनना चाहती थी कुछ सपने नीले
जीना चाहती थी ऐसा लम्हा
जहाँ ख़ुद के लिए वक्त की कमी न खले॥
सोच सब कुछ,आज आंसूं भी छलके हैं
पर जैसे वो आज किसी भी खुशी से ज्यादा हल्के है
सब कुछ पाने भर से जो नम पलकें है
यही गुजारिश है न जेहन में फिर कोई आंसूं पले॥
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9 comments:
sundar poem..............laazabaaw
सुन्दर रचना!!
बहुत खूब
सुन्दर रचना
खूबसूरत रचना।
बधाई।
bahut hi sundar !!
Mein fida ho gaya
पारुल जी बहुत सुन्दर कविता लिखी है
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति---सुन्दर भाव ।
पूनम
खूबसूरत रचना।
बधाई।
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