Friday, April 3, 2009

चाह!!


जब भी पढता हूँ मैं
तुम्हारी कोई भी नज़्म
यूं लगता है पिछली गलियों से
लम्हे बुलाने लगते है॥
मैं जो मुड़कर देखता हूँ
तो यादों की उन गलियों से
कुछ पल भूले से
मुस्कुराने लगते है॥
मैं लौट नही पाता ख़ुद तक
मन जाता है वहीं-कहीं भटक
यूं लगता है,जैसे
वो मुझे,मुझ तक ले जाने लगते है॥
मैं सोच में पड़ जाता हूँ
कि आख़िर मैं कहाँ हूँ
यादों के झरोखों से
भूले मंजर जगमगाने लगते है॥
मैं बोल कुछ नही पाता
न जाने कैसा है नाता
इतने अपने होकर भी
क्यों ये पल अनजाने लगते है॥
एहसास है या उलझन है
या मन तेरा दर्पण
तेरे लिखे एक एक लफ्ज़ में
हम ख़ुद को पाने लगते है॥
जो कलम तेरी चलती है
जैसे जिंदगी मुझसे मिलती है
और इन् मुलाकातों के किस्से
हम तन्हाई को सुनाने लगते है॥
ये दौर नही थमता है
मन यहीं कहीं रमता है
और ऐसे ही हम
तेरी इस कलम को चाहने लगते है॥

14 comments:

Unknown said...

पारूल जी , बहुत सुन्दर रचना आप ने पेश की है । एक से बढ़कर एक । जितनी तारीफ की जाये कम है ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मन की व्यथा-कथा सारी ही, शब्दों में भर डाली।
खामोशी से चोट हृदय की, नस-नस में कर डाली।
सीमित शब्दों लिख दी हैं, बड़ी चुटीली बातें।
जितनी बार पढ़ो उतनी ही मिलती हैं सौगातें।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना बन गयी ... बधाई।

Vinay said...

यह कैसा है संजोग
कि मैंने टिप्पणी की
और वह एक नज़्म बन गयी
या फिर वह पहले से ही
एक नज़्म थी!

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया रचना!!

mehek said...

khubsurat

समयचक्र said...

भावपूर्ण रचना पारुल जी धन्यवाद.

अबरार अहमद said...

बेहद उम्दा नज्म। बधाई। पुरानी यादें ताजा हो गई।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

Rahul kundra said...

sundar, rochak, khub, bahut khub, lafzoo ki kami hai aapke blog ki tarif ke liye.

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

सुंदर अभिव्यक्ति ,गहन भावनाओं का सुरुचिपूर्ण प्रवाह ,सभिकुच तो है आपके पास बस लाया का थोडा सा ध्यान और चाहिए .शुभकामनायें
डॉ.भूपेन्द्र

पूनम श्रीवास्तव said...

Parul,
achchhee kavita..badhai.
Poonam

Rajat Narula said...

मैं जो मुड़कर देखता हूँ
तो यादों की उन गलियों से
कुछ पल भूले से
मुस्कुराने लगते है

Awesome , suberb....

amar said...

nice rhythm