Monday, April 6, 2009

सबक!


फिर महकेगें लम्हे
उम्मीद के फूलों को
न झड़ने दो
जिंदगी की यादों को
यूं भी धुंधला न पड़ने दो
अजनबी लगे ये तन्हाई
न कर पाए कोई भरपाई
ख़ुद तक कहीं कोई राह दिखे
क़दमों को उस पर बढ़ने दो ॥
मन के इस सूनेपन में
जब कोई शब्द सुनाई न दे
एहसास का कोई बिखरा पन्ना
जब तक तुम्हे दिखाई न दे
जीवन की इस खामोशी को ही
थोड़ा सा पढने दो॥
अपना सा,उसका गम समझो
और अपने गम को कम समझो
उसके कुछ आँसू तुम्हे मिले तो
बारिश की रिमझिम समझो
नाउम्मीद सी इस मायूसी में
एक-दूजे को साथ संभलने दो॥
ये दर्द भरा एक मंजर है
जहाँ वक्त चलाता खंजर है
मरते है रोज यहाँ सपने
इसीलिए सोच भी बंजर है
पर इस बंजर से मन को
तुम यूं ही न मरने दो॥

9 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

तुम जो साथ हमारे होते
कितने हाथ हमारे होते।

यही कह सकता हूं इतनी अच्‍छी भावनाएं महसूसने के बाद।

Anonymous said...

फिर महकेगें लम्हे
उम्मीद के फूलों को
न झड़ने दो.


गहरी अभिव्यक्ति...

pallavi trivedi said...

उसके कुछ आँसू तुम्हे मिले तो
बारिश की रिमझिम समझो

bahut sundar...achchi lagi kavita.

mehek said...

मरते है रोज यहाँ सपने
इसीलिए सोच भी बंजर है
पर इस बंजर से मन को
तुम यूं ही न मरने दो॥ waah bahut sunder aashawadi rachana

अनिल कुमार वर्मा said...

जबरदस्त....शब्दों में किसी नदिया की धारा जैसी रवानी है...रचना में भटकाव नहीं है...सीधे दिल में उतर जाती है...बढ़िया रचना बधाई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वक्त चलाता खंजर देखा,
दर्द भरा इक मंजर देखा।
फिर भी आशा बची हुई है,
आखों में छवि रची हुई है।
बस थोड़ी सी मायूसी है,
इसीलिए ये खामोशी है।

परमजीत सिहँ बाली said...

आरूल जी,बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई।

Vinay said...

sundar kavita hai...

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पूनम श्रीवास्तव said...

Parul,
bahut sundar .ashavadee.bhavpoorn abhivyakti.
Poonam